पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/५८५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४९
चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

यदि सम्बन्धित कुछ लोग अपने मामलेको साधारण न्यायालयोंमें लड़ना उचित समझते हों तो उन्हें इसपर कोई आपत्ति नहीं होगी। श्री रोड इसपर सहमत हो गये। तब सभापतिने पूछा, क्या श्री गांधी यह चाहते हैं कि पंच-निर्णय माननीय सर एडवर्ड गेट स्वयं करें अथवा यह स्थानीय सरकारको सौंप दिया जाये? गांधीजीने उत्तर दिया कि उनके विचारमें माननीय सर एडवर्ड गेटको हो स्वयं पंच-निर्णय करना चाहिए। इसपर भी समिति सहमत हो गई। श्री रोडने जानना चाहा कि क्या महामान्य प्रत्येक कारखानेके लिए अलग-अलग अंक निश्चित करेंगे? श्री गांधीने जवाब दिया कि उनकी समझमें तफसीलमें जानेकी आवश्यकता नहीं है, इसे महामान्यपर ही छोड़ा जा सकता है। तब सभापतिने बताया कि मान लीजिए यदि पंच-निर्णय कर दिया गया; तो क्या बागान मालिकोंको इस सम्बन्धमें कोई आश्वासन देना आवश्यक है कि पंच-निर्णय रैयतके लिए अनिवार्य होगा। श्री ऐडमीने कहा कि इसके लिए विधानकी आवश्यकता होगी। किन्तु गांधीजीने उत्तर दिया कि यदि रैयतकी ओरसे उन्हें कार्य करनेके लिए वकालत-नामा मिल जाये तो उनके विचारमें यह ज्यादा आसान होगा और साथ ही यह विधानके समान ही प्रभावशाली भी हो जायेगा। इससे अधिक विलम्ब भी नहीं होगा और सभी दृष्टियोंसे सम्भवतः यह विशेष विधानको अपेक्षा कम तकलीफदेह भी होगा। सभापतिने पूछा कि जो लोग शरहबेशी नहीं दे रहे हैं और जिनके नाम रेकार्डमें नीलका कर्ज दर्ज है उनके मामलेमें क्या करना होगा। श्री गांधीने उत्तर दिया कि अन्तमें जो पंच-निर्णय हो उसके अनुसार उन्हें अपना ऋण अदा करनेकी छूट होनी चाहिए। अध्यक्षने बताया, समिति यह पहले ही स्वीकार कर चुकी है कि ‘तिन-कठिया’ प्रणाली इतनी बुरी है कि उसका उन्मूलन कर देना चाहिए। श्री गांधीने कहा कि इसके बावजूद उनकी समझमें यह नहीं आ सका कि यदि रैयत नहीं चाहती तो उसे बढ़ा हुआ किराया देनेके लिए मजबूर क्यों किया जाना चाहिए। वे प्रयत्न करके रैयतसे वकालतनामा उपलब्ध करनेके लिए तैयार हैं, किन्तु रैयतको पंच-निर्णय स्वीकार करनेके लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। श्री रोडने कहा कि उनके विचारमें वकालतनामा उपलब्ध करनेमें बहुत देर लगेगी और अध्यक्षने पूछा कि यदि रैयत बादमें इसे अस्वीकार कर दे तो क्या होगा? श्री गांधीने कहा कि ऐसी हालत में रैयतको संघर्ष करना होगा; किन्तु इसकी कोई सम्भावना नहीं। वे रिपोर्टमें यह शामिल करनेके लिए राजी हो जायेंगे कि “बागान- मालिकों की सुरक्षाके लिए रैयत द्वारा लेफ्टिनेंट गवर्नरके निर्णयको स्वीकार करनेके बारेमें सम्बन्धित रैयतसे वकालतनामा प्राप्त करनेकी जिम्मेदारी श्री गांधीकी होगी।” उन्होंने यह भी कहा कि यदि रैयत इस करारपर केवल हस्ताक्षर कर दे कि लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा निश्चित अंकोंको वह स्वीकार कर लेगी तो सम्भवतः वह और भी आसान हो। अध्यक्षने पूछा कि यदि इस करारको उपलब्ध करनेके पहले ही पंच-निर्णय हो गया तो क्या उसके बाद रैयतके पास हस्ताक्षर प्राप्त करनेके लिए जाना उचित होगा? श्री गांधीने कहा कि तब वकालतनामा नहीं बल्कि वैधानिक स्वीकृति प्राप्त