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३९८. पत्र: एस्थर फैरिंगको

अहमदाबाद
सितम्बर ६, १९१७

प्रिय एस्थर,

तुम्हारा पत्र पाकर बड़ी खुशी हुई। मैं इसी महीनेकी १४ तारीखको एक दिनके लिए मद्रासमें होऊँगा। मुझे १५ तारीखकी शामको ही वहाँसे रवाना हो जाना पड़ेगा।

यहाँ पहुँचनेके बादसे में बराबर हिंसात्मक तरीकोंके स्थानपर सत्याग्रहका सन्देश फैलाते हुए घूमता रहा हूँ। यह मुश्किल काम है। संलग्न कागजसे तुम देख सकोगी कि ‘सत्याग्रह’ से मेरा अभिप्राय क्या है।

मेरी मंशा यह नहीं थी कि पोशाक सम्बन्धी तुम्हारी टिप्पणी प्रकाशित की जाये। मैं डॉ० एम० को उसके बारेमें चेतावनी देना भूल गया। उन्हें तुम्हारे विचार इतने पसन्द आये कि वे अपनेको रोक नहीं सके। मुझे आशा है कि तुम्हारे ऐसे पत्रोंका, जिनसे मेरी रायमें कुछ मदद मिलती है, डॉ० एम० को भेजना तुम बुरा नहीं मानोगी।

“इच्छासे मुक्ति” एक ... पारिभाषिक व्यंजना है और इसका मतलब है सर्वोत्तमसे कुछ कम बनने या पानेकी कामना करना। अतः ईश्वरसे प्रेम करना ‘कोई इच्छा’ नहीं है। यह तो स्वाभाविक कामना है। किन्तु मैं कुछ भलाई कर सकूँ इसलिए विशाल धनकी उपलब्धि, एक इच्छा है और इसका दमन करना चाहिए। हमारे अच्छे कार्य उतने ही सहज होने चाहिए जितना सहज हमारी पलकोंका उठना-गिरना। हमारे इच्छा किये बिना ही वे स्वतः उठती-गिरती रहती हैं। अच्छे कार्योंका करना भी उतना ही सहज होना चाहिए।

सदैव तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड