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निष्क्रिय प्रतिरोध नहीं, सत्याग्रह

है कि हिन्दुस्तानके करोड़ों

अज्ञानी कृषकोंमें सत्याग्रहकी शिक्षा

फैलना असम्भव अथवा बहुत ही कठिन है, एवं सरल होनेपर भी आपदग्रस्त है; क्योंकि अशिक्षित अज्ञानियोंको एक दशासे दूसरी दशामें ले जाना अति कठिन है। उक्त दोनों दलीलें निरी पोच हैं। हिन्दुस्तानकी प्रजा सत्याग्रहकी शिक्षा ग्रहण करनेके सर्वथा उपयुक्त ही है। हिन्दुस्तानको धर्मका ज्ञान है। जहाँ धर्म-ज्ञान है वहाँ सत्याग्रह अत्यन्त सहज है। हिन्दुस्तानकी प्रजाने भक्तिका रसामृत पान किया है। यह महान्प्र जा श्रद्धासे परिपूर्ण है। ऐसी प्रजाको सत्याग्रह रूपी शुद्ध मार्गपर ले जाना कुछ भी कठिन नहीं। किसीको शंका है कि सत्याग्रहमें पड़कर जन-समाज पीछे शस्त्रक्रियाका प्रयोग करने लगेगा। यह भय मिथ्या है। सत्याग्रहसे असत्याग्रहके पथपर जाना असम्भव है। हाँ, यह सम्भव है कि कुछ शस्त्रक्रियाधारी पुरुष छलसे सत्याग्रहमें प्रविष्ट होकर लोगोंको भ्रममें डालें और उनसे शस्त्रक्रियाका प्रयोग करा दें। ऐसा सभी कामोंमें हो सकता है, किन्तु अन्य कामोंकी अपेक्षा सत्याग्रहमें ऐसा सन्देह बहुत कम रहता है। क्योंकि यहाँ शीघ्र ही पोल खुल जाती है; और जन-समाजके शस्त्रक्रियाके लिए तैयार न होनेपर उसको शस्त्रक्रियाके भयंकर पथपर ले जाना असम्भव है।शस्त्रक्रियाका बल सत्याग्रह शक्तिका सर्वथा विरोधी है। जैसे उजालेमें अन्धकारका अभाव रहता है वैसे ही आत्मिक शक्ति-रूपी तेजमें अनात्मिक शस्त्रक्रियाका प्रवेश नहीं हो सकता। दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहमें कितने ही पठान भाई भी शामिल थे और वे सत्याग्रहके सभी नियमोंको मानते थे।

फिर यह भी शंका की जाती है कि सत्याग्रही होनेमें बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है और सारी प्रजा इस महान् कष्टको झेलनेके लिए तैयार न होगी। यह शंका निर्मूल है। जैसा श्रेष्ठ पुरुष करते हैं वैसा ही इतर पुरुष सदासे करते आये हैं। इसमें सन्देह नहीं कि सत्याग्रही नेताका पैदा होना बहुत मुश्किल है। हमारा अनुभव है कि जितनी विभूतियाँ शस्त्रधारीके लिए आवश्यक हैं, वे सब और उससे कहीं बढ़कर संयम, अभय आदि गुण सत्याग्रहीके लिए अनिवार्य रूपसे आवश्यक हैं। शस्त्रधारीकी महत्ता शस्त्रकी श्रेष्ठतामें नहीं है, न उसके शारीरिक बलमें ही है, बल्कि उसकी दृढ़तामें और मृत्युके प्रति निर्भीकतामें है। जनरल गॉर्डन ब्रिटिश साम्राज्यका एक भारी योद्धा था। उसकी जो प्रतिमा उसके स्मरणार्थ बनाई गई है उसमें उसके हाथमें खाली एक पतली-सी छड़ी रखी गई है। इससे यह सिद्ध होता है कि योद्धाकी शक्तिका माप उसके शस्त्रोंसे नहीं होता, बल्कि उसके मनोबलसे किया जाता है। सत्याग्रहीके लिए शस्त्रधारीसे करोड़ों गुना अधिक मनोबल चाहिए। ऐसे पुरुषके जन्मसे हिन्दुस्तानका उद्धार क्षण भरमें हो सकता है। हिन्दुस्तान ही क्या सारी सृष्टि ऐसे सत्याग्रहीकी बाट जोह रही है। तबतक हम सब यथाशक्ति सत्याग्रहका पालन कर भूमि तैयार कर सकते हैं।

सत्याग्रहका प्रयोग

आधुनिक प्रवृत्तिमें हम कैसे कर सकते हैं? स्वराज्यके आन्दोलनमें सत्याग्रहका प्रयोग क्यों करें? हम सब वीरत्वकी हत्या करते हैं, जबतक विदुषी एनी बेसेंट नजरबन्द हैं तब-तक हमारे वीरत्वको लाज आनी चाहिए। हम सत्याग्रहसे एनी बेसेंटको कैसे छड़ाएँ?