पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/५६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

“पैसिव रेजिस्टेंस” शब्दमें इंग्लैंडकी सफरेजिट, वोट चाहनेवाली, औरतोंके आन्दोलनका समावेश होता था। इन औरतोंका मकानोंको जलाना भी “पैसिव रेजिस्टेंस” था और उनका कारागृहमें उपवास भी “पैंसिव रेज़स्टेिंस” माना जाता था। वे सब भले ही “पैसिव रेजिस्टेंस" हों, परन्तु “सत्याग्रह” नहीं थे। कहा जाता है कि “पैसिव रेजिस्टेंस” दुर्बल मनुष्योंका हथियार है, किन्तु जिस शक्तिका वर्णन करना इस लेखका उद्देश्य है उसका प्रयोग तो बलिष्ठ मनुष्य ही कर सकता है। यह शक्ति 'निष्क्रिय प्रतिरोध' नहीं है; और इस शक्तिके प्रयोगमें प्रचण्ड क्रियाकी आवश्यकता है। दक्षिण आफ्रिकाका आन्दोलन निष्क्रिय (पैसिव) नहीं वरन् सक्रिय (ऐक्टिव) था। दक्षिण आफ्रिकाके भारतवासी मानते थे कि सत्य उनका ध्येय था। सत्यकी सदा जय होती ही है। इस उद्देश्य-निश्चयसे वे अपने सत्यपर आग्रहपूर्वक डटे रहते थे। उस आग्रहके कारण जो कष्ट उन्हें उठाना पड़ता था उसको वे धैयपूर्वक उठाते थे। सत्यको मरण-पर्यंत त्यागना नहीं चाहिए, यही समझकर वे उसका पालन करनेमें मृत्युका भय भी त्याग देते थे। सत्यके लिए वे जेलको महल मानते थे, और जेलके दरवाजोंको स्वतन्त्रताका द्वार।

सत्याग्रह क्या है?

सत्याग्रहमें शारीरिक बलका प्रयोग नहीं है। सत्याग्रही शत्रुको कष्ट नहीं देता। सत्याग्रही शत्रुका नाश नहीं चाहता। सत्याग्रही बन्दूक आदि शस्त्रोंका प्रयोग कदापि नहीं करता। सत्याग्रहके प्रयोगमें द्वेषका सर्वथा अभाव है।

सत्याग्रह विशुद्ध आत्मिक शक्ति है; आत्मा सत्यका स्वरूप है। इसीलिए इस शक्तिको सत्याग्रह कहते हैं। आत्मा ज्ञानमय है। उसमें प्रेम-भाव प्रज्वलित होता है। अज्ञानसे यदि कोई हमें कष्ट देगा तो हम उसको प्रेम-भावसे जीत लेंगे। “अहिंसा परमो धर्मः” इस शक्तिका प्रमाण है। अहिंसा सुषुप्त स्थिति है; उसका जाग्रत स्वरूप प्रेम है। प्रेमके वश होकर यह संसार चलता है। एक अंग्रेजी कहावत है: “माइट इज़ राइट” अर्थात् शक्ति ही सत्य है दूसरा “सरवाइवल ऑफ द फ़िटेस्ट” अर्थात्ब लिष्ठ ही संसारमें बचे रहते हैं। ये दोनों सूत्र उपर्युक्त सूत्रके विरोधी हैं। दोनों ही सर्वथा सच्चे नहीं हो सकते। यदि वैर-भाव ही इस जगत्में प्रधान रहता तो संसार कभीका नष्ट हो चुका होता। न मुझे इस लेख ही के लिखनेका अवसर प्राप्त होता और न मैं पाठकोंकी आशा पूर्ण कर सकता। प्रेम-भावके लिए ही आज हम जी रहे हैं। इसके साक्षी स्वयं हम सब हैं। हम पश्चिमकी आधुनिक सभ्यताके भ्रममें पड़े हुए प्राचीन सभ्यताको भूलकर शस्त्रक्रियाकी पूजा करते हैं।

शस्त्र-पूजा

और सर्वधर्मके सारांश अहिंसा तत्वको भूल जाते हैं। शस्त्र ही एक अधर्मसूचक सूत्र है। उसीकी अधीनताके कारण यूरोपमें दारुण युद्ध हो रहा है।

हिन्दुस्तान में भी शस्त्र-पूजा पाई जाती है। तुलसीदासजीके अलौकिक ग्रन्थमें भी यह पूजा दृष्टिगोचर होती है। परन्तु सभी ग्रन्थोंमें देखा जाता है कि आत्मिक बल ही सर्वोत्कृष्ट शक्ति है।