३९३. पत्र: मगनलाल गांधीको
बम्बई
भादों सुदी १५, [सितम्बर १, १९१७][१]
मैंने आज उस ओर निकलनेकी सारी तैयारी कर ली थी; किन्तु निकल नहीं सका। श्रीमती पोलकके बुखारका आज चौथा दिन है; लगातार ज्वर बना हुआ है। उनकी इच्छा है कि मैं उन्हें ऐसी स्थितिमें छोड़कर न जाऊँ; मुझे भी ऐसा ही लगता है। श्रीमती पेटिट उनकी सेवा-शुश्रूषा बहुत अच्छी तरह कर रही हैं किन्तु उन्हें लगता है कि यदि बीमारी लम्बी चलती दिखे तो उन्हें वहाँ नहीं पड़े रहना चाहिए। इसलिए यदि मुझे दो-तीन या इससे भी ज्यादा दिन तक रुकना पड़े तो आश्चर्य नहीं। मैं तार करूँगा।
श्री पोलक कल चले गये।
सत्याग्रहके बारेमें काम ठीक चल रहा है। आज सभा है; आशा है कि उसमें जिसपर सब एकमत हों, ऐसा प्रस्ताव पास हो जायेगा।[२]
अमृतलाल भाई बीमार पड़ गये हैं इसलिए उन्हें देर लग रही है। तबीयत अब कुछ ठीक है; अतः सम्भवतः आठ-दस दिनमें हमारे लिए मकानका नक्शा तैयार कर देंगे।
वहाँ सब स्वस्थ और प्रसन्न होंगे। ठाकोरलालको हर माह १५ रु० देने हैं। मैंने भाई फूलचन्दसे कह दिया है। [मेरे नाम यहाँ] डाक भेजना फिर शुरू कर देना। मावजीभाईके भाईको मोजोंके लिए ३० रु० तक का सूत, वे जिस जगह बतायें वहाँ, भेजना है। [उनसे] पूछकर प्रबन्ध कर देना।
मंगलदास सेठने कहा है कि वे हमें हमारी जरूरतका सारा सूत बाजारकी अपेक्षा दो आने कम भावपर देंगे।
बापूके आशीर्वाद
इमाम साहबको तुमने खबर नहीं दी इसलिए उन्हें कुछ दुःख हुआ है। मुझे इसका पता ही नहीं था कि कपड़ा उनके लिए है। मैं सोच रहा था, किसके लिए होगा।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७२२) से।
सौजन्य: राधाबेन चौधरी