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उपनिवेशोंमें भारतीय प्रवासी

कोई चिन्ता मत करना, और थोड़े समय और जीवनका सुख भोगकर मेरे पास लौट आना। मैं तुम्हें अपने निजी कामके लिए चाहता हूँ, स्कूलके लिए या अन्य किसी कामके लिए नहीं। तुम जहाँ हो, वहीं साल छ: महीने बने रहो। तबतक मैं तुम्हारे विना अपना काम चला लूँगा।

इस पत्रको पढ़ने के बाद वापस भेज देना, क्योंकि इसमें बापूकी बात मैंने उन्हींके शब्दोंमें दी है। कालान्तरमें इन्हें भूल जानेको सम्भावना है।[१]

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाई द्वारा नरहरी परीखको ता० २-९-१९१७ को लिखा पत्र: महादेव देसाईज अर्ली लाइफ, पृष्ठ ५२-४ से उद्धृत

 

३९२. उपनिवेशोंमें भारतीय प्रवासी

भारत सरकारने इस माहकी पहली तारीखको जो प्रस्ताव शिमलासे प्रकाशित किया है उसे मैं ध्यानपूर्वक पढ़ गया हूँ। इस प्रस्तावमें लन्दनमें हाल ही में होनेवाले अन्तविभागीय सम्मेलनकी[२] रिपोर्ट शामिल की गई है। स्मरण होगा कि यह वही सम्मेलन था जिसका जिक्र केन्द्रीय विधान परिषद् के अधिवेशनका उद्घाटन करते हुए पिछले वर्ष वाइसरॉय महोदयने किया था। यह भी स्मरणीय है कि यह वही सम्मेलन था जिसमें सर जेम्स मेस्टन और सर एस० पी० सिन्हा भाग लेने वाले थे, लेकिन सम्मेलन आरम्भ होनेसे पहले ही भारत लौट आनेके कारण वे भाग नहीं ले पाये थे।[३] जिस रिपोर्टपर हम यहाँ विचार करने जा रहे हैं उसमें कहा गया है कि दोनों सज्जन कतिपय अंग्रेजी उपनिवेशोंमें प्रवासके प्रश्नपर भारत-मन्त्री और उपनिवेश मन्त्रीसे अनौपचारिक चर्चा करनेवाले थे। लॉर्ड इसलिंगटन,[४] सर ए० स्टील मेटलैंड[५] और सर्वश्री सीटन,[६] क्रिडिल,[७] ग्रीन[८] और मैकनॉटनने[९] सम्मेलनमें भाग

  1. १. महादेव देसाई (१८९२-१९४२) गांधीजीके निजी सचिव: सन् १९१७ में गांधीजीके साथ हुए। अपने जीवन-कालमें गांधीजीके विचारोंके प्रमुख भाष्यकार; वर्षौंतक गांधीजीके साप्ताहिकोंका सम्पादन किया किया: वे गांधीजीके अत्यन्त निकटके अनुपाथियोंमें एक थे और अनन्य निष्ठा के साथ मृत्यु पर्यन्त उनकी सेवा करते रहे; गांधीजीने उनकी मृत्युपर कहा था: “महादेव में अपनेको शून्य कर लेनेकी अद्भुत क्षमता थी।”
  2. २. यह सम्मेलन ब्रिटिश गायना, ट्रिनीडाड, जमैका और फीजीमें सहायता प्राप्त प्रवासकी नई प्रणालीपर विचार करनेके लिए मई, १९१७ में लन्दनमें हुआ था।
  3. ३. जेम्स मेस्टन और एस० पी० सिन्हाने लन्दनमें अप्रैल, १९१७ में होनेवाले साम्राज्यीय युद्ध-सम्मेलन में भारतका प्रतिनिधित्व किया था। भारत सरकारने उन्हें लन्दनमें ही होनेवाले अन्तविभागीय सम्मेलनके लिए भी अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया था किन्तु उन्हें सम्मेलन आरम्भ होनेसे पहले ही भारत लौट आना पड़ा था। (इंडियन रिव्यू, १९१७, पृष्ठ ६२६)।
  4. ४. सम्मेलनके अध्यक्ष।
  5. ५.
  6. ६,
  7. ७,
  8. ८ और
  9. ९.विभिन्न मन्त्रालयोंके प्रतिनिधि-सदस्य।