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३९०. भाषण: व्यापारियोंकी सभामें[१]

अगस्त २४, १९९७

ऐसा लगता है मानो जिस वस्तुकी प्राप्तिके लिए हम संघर्ष कर रहे थे, वह समीप आ गई है। सरकारी अधिकारियोंका विचार है कि इस देशके वकीलों तथा डॉक्टरोंके पास अन्य कोई धन्धा नहीं है इसी कारण वे अनर्गल बोलते रहते हैं तथा राजनीतिक विषयोंपर चर्चा करते रहते लेकिन आजकी सभाको देखकर उनकी यह धारणा मिथ्या सिद्ध होती है। सरकारने विद्यार्थियोंके [राजनीतिक सभाओं में] भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है फिर भी वे सब [सभाओंमें आनेसे] बिलकुल बाज नहीं आते[२] और अब व्यापारीवर्ग भी राजनैतिक हलचलके महत्त्वको समझने लगा है। मेरा विचार है, जबतक व्यापारी वर्ग हिन्दुस्तानकी समस्त राजनीतिक हलचलोंकी बागडोर अपने हाथमें नहीं ले लेता तबतक हिन्दुस्तानका भला हो ही नहीं सकता। इंग्लैंडके व्यापारी अपनी स्वतन्त्रताके लिए संघर्ष करनेके कारण [संसार-भरमें] प्रसिद्ध हो गये हैं। अहमदाबाद गुजरातकी राजधानी है और उसका प्रभाव भी बहुत है। यहाँके व्यापारियोंकी भाँति यदि अन्य व्यापारी भी राजनैतिक हलचलोंमें विशेष भाग लेने लगेंगे तो हिन्दुस्तान अपने उद्देश्योंकी पूर्तिमें सफल हुए बिना नहीं रहेगा।

[गुजरातीसे]
प्रजाबंधु, २६-८-१९१७
 

३९१. महादेव देसाईके साथ वार्तालाप

अगस्त ३१, १९१७

...३१ अगस्तकी सुबह बापूजीके कुछ शब्दोंन मेरे मनमें प्रेम, व्याकुलता और हर्षके मिले-जुले भाव पैदा कर दिये। मैं इस पत्रमें उनके साथ हुई अपनी छोटीसी बातचीतको लिखनेकी कोशिश करूँगा, हालांकि उसे शब्दोंमें रख सकना आसान नहीं है। बापूजीने कहा:

मैंने जो तुमसे रोज अपने यहाँ आनेको कहा है वह अकारण ही नहीं है। मैं चाहता हूँ कि तुम आकर मेरे साथ ठहरो। मैंने पिछले तीन दिनोंमें तुम्हारी क्षमता देख ली है। मैं पिछले दो सालसे जैसे नवयुवककी खोजमें हूँ वह मुझे तुम्हारे रूपमें

  1. १. यह सभा स्थानीय होमरूल लीगके तत्वावधान में हुई थी, जिसमें श्रीमती बेसेंट और उनके सहयोगियोंके रिहा किये जानेकी माँग की गई थी। इसकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी।
  2. २. १९१७ के मई-जून महीनोंमें, मद्रास, बम्बई और बंगाल सरकारोंने आदेश जारी करके स्कूलों-कॉलेजोंमें पढ़नेवाले विद्यार्थियोंके राजनैतिक सभाओं में भाग लेनेपर प्रतिबन्ध लगा दिया था।