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चम्पारन-समितिको बैठककी कार्यवाहीका सारांश

 

तावान: श्री गांधीने तावानके प्रश्नके सम्बन्धमें कहा कि वे हालमें पट्टोंपर दिये गये गाँवोंमें तावानके मामलोंपर नजर रखते रहे हैं और उन्होंने ऐसे मामलोंकी एक सूची तैयार कर ली है जिनमें, उनके खयालसे नीलके सट्टे तावान-वसूलीके उद्देश्य से ही लिये गये थे और उन्होंने सुझाव रखा कि दस वर्षसे कमकी नीलकी खेतीवाले गाँवोंमें जहाँ भी तावान लिया गया हो, उसे पूराका-पूरा लौटाया जाना चाहिए। अध्यक्षने पूछा कि क्या समिति ऐसी एक सामान्य सिफारिशसे सहमत होगी कि यदि पिछले कुछ वर्षोंके दौरान किसी ऐसे गाँवसे तावान वसूल किया गया हो जहाँ नीलकी खेती कभी नहीं हुई, तो पूराका-पूरा तावान लौटा दिया जाना चाहिए? श्री रोडने सुझाव दिया कि ऐसे मामलोंका फैसला बेतिया राजपर छोड़ देना चाहिए। श्री रेनीने बतलाया कि आपत्तिजनक मामले तो वे हैं जिनके बारेमें निश्चित है कि मात्र तावान वसूल करनेके उद्देश्यसे सट्टे लिये गये थे । इस मामलेमें तिथियोंपर इतना भरोसा नहीं। करना चाहिए; वे दस वर्षको ही निश्चित अवधिपर सहमत नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा एक मसविदा आसानीसे तैयार किया जा सकता है कि जिसपर सभी सदस्य सहमत हों। उन्होंने सुझाव दिया कि सिफारिश की जानी चाहिए कि बेतिया राजको जहाँ-कहीं यह लगे कि नील-सट्टे नीलकी खेतीके उद्देश्यसे नहीं बल्कि तावान-वसूलीके उद्देश्यसे लिये गये थे, उन मामलोंमें राजको पूराका-पूरा तावान लौटानेपर जोर देना चाहिए। अध्यक्षने इसमें यह और जोड़नेका सुझाव रखा कि जहाँ भी किसी फैक्टरीने एक वर्षतक नीलकी खेती करनेके बाद तावान लिया हो, वहाँ यह मान लेना चाहिए कि सट्टे केवल तावान-वसूलीके उद्देश्यसे लिये गये थे। इसपर सभी सहमत हुए।

ठेका-पट्टे: श्री गांधीने सुझाव दिया कि समितिको सिफारिश करनी चाहिए कि ठेका-पट्टे छोटी अवधिके लिए ही हों। अध्यक्षने कहा कि उनका अनुभव यह है कि अल्पकालीन ठेकोंमें रैयतको लूटनेका ठेकेदारोंको बड़ा लालच रहता है। मध्य प्रान्तोंमें ठेकोंको लम्बा करनेकी लेकिन साथ ही उनको रद्द करनेके बारेमें कड़ी शर्तें लगानेकी नीति रही है और उनके विचारमें अल्पकालीन ठेकोंकी अपेक्षा वह नीति कहीं अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण है। श्री गांधीने अपना सुझाव वापस ले लिया ...

विशेष न्यायाधिकरण: श्री गांधीने विशेष न्यायाधिकरण सम्बन्धी प्रस्तावोंके बारेमें एक संशोधनका सुझाव रखा कि उच्च-न्यायालय में उसके फैसलोंकी अपीलकी अनुमति रहनी चाहिए। श्री रेनीने विचार व्यक्त किया कि यदि इसमें किसी संशोधनको आवश्यकता है भी तो वह दूसरी ही दिशामें किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरणमें एक वरिष्ठ राजस्व अधिकारी और एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी रहना चाहिए और उनके फैसलेके विरुद्ध अपील की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। जरूरत इस बातकी है कि जो निर्णय हो, अन्तिम हो और यदि कई प्रकारकी अपीलोंकी व्यवस्था की जायेगी तो परिस्थिति वैसी ही हो जायेगी जैसी कि साधारण न्यायालयोंपर इसका निर्णय छोड़नेसे होती। श्री गांधीने कहा कि यदि अपीलको व्यवस्था न हो