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चम्पारन समितिको बैठककी कार्यवाहीका सारांश

दी है, तो क्या उनके ऐसा कहने पर श्री गांधीको कोई आपत्ति होगी कि उन्होंने ४० प्रतिशत कटौतीपर समझौता करनेकी बात भी कही थी ? श्री गांधीने उत्तर दिया कि वे इसके लिए तैयार हैं कि सरकारको भी सभी तथ्य बतला दिये जायें, यह भी कि उन्होंने ४० प्रतिशतपर समझौता करनेको कहा था, परन्तु वे इसके लिए तैयार नहीं हैं कि मध्यस्थता-निर्णय २५ प्रतिशतसे ५५ प्रतिशतके सिवा किसी और सीमाके बीच किया जाये। श्री रोडने बतलाया कि बागान-मालिक २५ प्रतिशतका प्रस्ताव अन्तिम रूपसे रख चुके हैं और श्री गांधीकी ओरसे भी ४० प्रतिशतका प्रस्ताव अन्तिम माना जाना चाहिए। श्री गांधीने कहा कि वे इसके लिए तैयार हैं कि सरकार मध्यस्थता इस बात करे कि कटौती बिलकुल भी नहीं होनी चाहिए या पूरी १०० प्रतिशत कटौती होनी चाहिए, उसे यही दो सीमाएँ माननी चाहिए; और साथमें उसे यह भी बता देना चाहिए कि बागान-मालिक २५ प्रतिशत और वे खुद ४० प्रतिशत तककी कटौती माननेके लिए तैयार थे। उन्होंने कहा कि यह बतलानेके लिए कि उनका रवैया कितना उचित रहा है वे अपनी असहमति-टिप्पणीमें भी यह सब लिखनेको तैयार हैं। तब अध्यक्षने कहा कि वे अन्तिम रूपसे एक प्रस्ताव रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि श्री गांधीको मेरा यह मत भली-भाँति विदित है कि रैयतका २५ प्रतिशत कटौती स्वीकार कर लेना सुविचारपूर्ण रहेगा । मैंने श्री गांधी के विचार भली प्रकार समझ लिये हैं और रैयतको स्थितिको समझनेकी भरसक कोशिश भी की है। मैं व्यक्तिगत रूपसे सरकारके सामने मध्यस्थ-निर्णयका कोई प्रस्ताव नहीं रखना चाहता, क्योंकि वैसा करनेका मतलब यह होगा कि समिति अपने कामको पूरी तरह अंजाम नहीं दे सकी। इसके सिवा मध्यस्थ-निर्णय करनेके लिए सरकारकी स्थिति उतनी अच्छी नहीं होगी जितनी कि समितिको है । यदि श्री गांधी इस बातके लिए तैयार हैं कि सरकार मध्यस्थ-निर्णय करे, तो क्या उनको अध्यक्षपर इतना भरोसा है कि मध्यस्थ-निर्णय करनेका काम सौंप दें, इन तीन शर्तों पर:

१. कि मध्यस्थ-निर्णय किसी भी तरह २५ प्रतिशतसे ४० प्रतिशतके बीचके अंकसे कम न हो,
२. वे जो भी अंक निर्धारित करें, उसे माननेके लिए बागान-मालिकोंको राजी करनेकी कोशिश करेंगे,
३. वे उसके लिए समितिकी सर्वसम्मत सहमति प्राप्त करनेकी कोशिश करेंगे।

श्री गांधी इस बातपर सहमत हुए कि यदि सम्भव हो तो समितिको स्वयं ही यह काम करना चाहिए। परन्तु उन्होंने सन्देह प्रकट किया कि अध्यक्ष इस स्थितिमें, खास तौरपर जब वे अबवाबके सिलसिलेमें लगान बढ़ानेकी बात कह चुके हैं जो उनके [श्री गांधी के] विचारोंके सर्वथा प्रतिकूल है, पूरी स्थितिपर एक नये सिरेसे दृष्टिपात करनेमें कैसे समर्थ हो सकेंगे। अध्यक्षने कहा कि मैं तो २५ प्रतिशत और ४० प्रतिशतकी सीमाओंके बीच केवल एक पंचकी तरह निर्णय कर सकता हूँ और मैंने वास्तवमें एक