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चम्पारन समितिको बैठककी कार्यवाहीसे

तैयार नहीं हूँ कि लगान आसानीसे अदा किया जा सकता है। ...श्री गांधीने कहा कि रैयत किस श्रेणीकी है, और भूमिकी उत्पादन-शक्ति क्या है, इन दोनों ही बातों-पर विचार करना जरूरी है। चम्पारनकी रैयत आदतन अच्छी काश्तकार नहीं है। मेरी रायमें यदि लगानकी दरें प्रकटतः कम हैं, तो इसका समुचित कारण भी है। मैं समझता हूँ कि लगानमें वृद्धि न करके जो रियायत दिखाई गई है, रैयतने उसकी पूरी कीमत चुका दी है। मेरी दृष्टिमें कानूनी स्थिति तो यह है कि बिना कोई मुआवजा चुकाये रैयत नील पैदा करनेकी बाध्यतासे अपनेको मुक्त मान सकती है। ऐसा कहनमें मेरा मंशा यह नहीं है कि नीलकी खेती बिलकुल खत्म हो जाये। मैं रैयतको सलाह दूँगा कि वह नीलकी खेती करे, बशर्ते कि उसके लिए उसे मुनासिब पैसे मिलें। ... श्री रेनीने कहा कि श्री स्वीनीके उत्पादन सम्बन्धी आँकड़ोंके अनुसार पिपरामें लगान बहुत कम था, मोतीहारीमें मामूली था और तुरकौलियामें भी लगान ज्यादा नहीं था। यदि शरहबेशीमें २५ प्रतिशत कमी कर दी जाये तो राहत मिलनेकी काफी गुंजाइश पैदा हो जायेगी। श्री गांधीने कहा कि मैं २५ प्रतिशत छूटकी बात स्वीकार करनेमें अपनेको असमर्थ पा रहा हूँ। श्री रोडने जानना चाहा कि क्या परस्पर सहमतिसे समझौता न होने पर श्री गांधी अदालतकी स्थापना करनेका सुझाव रखेंगे। श्री गांधीने कहा कि यदि समिति किसी समझौतेपर नहीं पहुँच पाती, तो मैं अदालतका सुझाव माननेको तैयार रहूँगा। मैं जानना चाहता हूँ कि क्या समिति और अधिक छूट देनेकी सिफारिश नहीं कर सकती? अध्यक्षने कहा कि मेरी रायमें समिति बागान-मालिकोंसे ज्यादासे-ज्यादा जितनी कमी करा सकती थी, वे उतनके लिए राजी हो गये हैं, और मैं उससे ज्यादाकी छूट स्वीकार करनेको तैयार नहीं हूँ। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि इस प्रस्तावको स्वीकार करके रैयतका कोई भी व्यक्ति कभी पछतायेगा। इससे केवल वही रैयत असन्तुष्ट हो सकती है जो अब भी नीलकी खेती करती हो। श्री गांधीने कहा कि रैयत ऐसा समझती है कि जहाँ शरहबेशी खण्ड १० (ग) के अन्तर्गत निर्धारित की गई है, वहाँ भी वह कानूनी तरीकोंसे उससे मुक्ति पा सकती है। इसलिए मुझे ऐसा नहीं लगता कि मौजूदा प्रस्तावको अस्वीकार करके उन्हें पछताना पड़ेगा।

श्री गांधीने जानना चाहा कि यदि समिति सामान्य प्रश्नपर किसी निष्कर्ष तक पहुँच जाती है तो जलहाको कम्पनीके मामलेमें क्या होगा। उस कम्पनीने काश्तकारोंसे उनकी भूमि वापस ले ली थी, और फिर उनके रिश्तेदारोंके साथ बढ़े हुए लगानके आधारपर बन्दोबस्त कर लिया था, और इस रूपमें शरहबेशी वसूल को थी। दीवानी अदालतने कुछ मामलोंमें फैसला दिया था कि पुराने काश्तकारोंको पहलेके लगानकी दरपर उनकी भूमि वापस कर दी जाये। अध्यक्षने कहा कि यह पहला अवसर है कि यह मामला मेरे ध्यान में लाया गया है। मेरे विचारसे कोई बात तय करनेसे पहले हमें तथ्योंका पता लगा लेना चाहिए और सुन लेना चाहिए कि श्री जेम्सनको इस बारेमें क्या कहना हैं...