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३८४. चम्पारन-समितिको बैठककी कार्यवाही से

अगस्त १२, १९१७

अगली बैठकमें समितिके निमन्त्रणपर सर्वश्री इर्विन (मोतीहारी), नॉर्मन (पिपरा) और हिल (तुरकौलिया) उपस्थित थे। अध्यक्षने कहा कि यहाँ होनेवाली चर्चा सर्वथा गुप्त रखी जाये। उन्होंने बताया कि समिति सर्वसम्मतिसे इस निष्कर्षपर पहुँची है कि तिन-कठिया प्रणाली समाप्त होनी चाहिए और उसके स्थानपर एक संक्षिप्त अवधिवाले बन्दोबस्तके अन्तर्गत खुश्की प्रणाली लागूकी जानी चाहिए। इसलिए जहाँ अबतक नील पैदा करनेकी बाध्यता बनी हुई है और जहाँ उससे माफी मिल गई है, ऐसे सभी मामलोंमें नील पैदा करनेकी बाध्यतासे छूटके प्रश्नपर विचार करना आवश्यक हो गया है। ... चूँकि श्री गांधीने कहा था कि वे कुछ निश्चित सिद्धान्तोंके आधारपर समझौतेकी सम्भावनापर विचार करनेको तैयार हैं इसलिए श्री रोडने उनसे कहा कि वे उपस्थित बागान-मालिकोंके सामने अपना प्रस्ताव रखें। श्री गांधीने कहा कि मेरा उद्देश्य सद्भावना और हेलमेल पैदा करना है। जितनी बड़ी संख्या में लोगोंने शरहबेशीके खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शित किया है, उसे देखते हुए मुझे कोई सन्देह नहीं है कि रैयतको शरहबेशीके कारण बहुत कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी हैं। अनिवार्यताकी शर्तमें परिवर्तन करनेके समय नीलकी खेती लाभजनक नहीं रह गई थी, और उक्त बाध्यता समाप्त करनेमें दोनों पक्षोंको लाभ था। इसलिए यदि रैयत लगानमें कानूनकी रूसे साधारण वृद्धिके अलावा कोई और भार थोपनेपर एतराज प्रकट करती है तो वह उचित ही है। साधारण वृद्धिके प्रश्नके सम्बन्धमें, जिसपर पिछली बैठकमें कुछ शंकाएँ प्रकट की गई थीं, श्री गांधीने १९१६ की स्पेशल अपील संख्या १४ पर स्पेशल जज द्वारा दिये गये निर्णयका उल्लेख किया और कहा कि अन्ततः जो वृद्धि करनेका फैसला होगा वह चार आने आठ पाई नहीं, तीन आने ही होगा। उन्होंने कहा, मैंने शरहबेशीके बदले रियायतके तौर पर एक आनेकी अतिरिक्त वृद्धि करनेका सुझाव दिया है। बागान-मालिक शरहबेशीकी जो रकम पहले ही पा चुके हैं उसमें से कोई अंश वापस देनेकी बात निस्सन्देह उन्हें अपने साथ अन्याय लगेगी, लेकिन मैं उनसे अपील करूंगा कि वे रैयतकी स्थितिको भी समझें। जहाँ शरहबेशी पहले ही वसूली जा चुकी है ऐसे सभी मामलोंमें कटौती करनेके किसी प्रस्तावको में स्वीकार करनेके लिए तैयार हूँ। समझौता-वार्ताके लिए ऐसा प्रस्ताव ज्यादा अच्छा होगा। उन्होंने कहा, आपसी समझौते द्वारा एक राशि नियत कर लेना दोनों पक्षोंके लिए अच्छा होगा। अगर सुझाये गये दोनों तरीकोंसे ऐसा समझौता नहीं हो सका तो एक विशेष अदालत द्वारा लगान तय करानेका रास्ता ही बच रहेगा। इससे बड़े लम्बे झगड़े खड़े हो जायेंगे और उनका निपटारा होनेमें बहुत समय लगेगा । तथापि, यदि बागान-मालिक विशेष अदालतकी स्थापनाको ज्यादा बेहतर तरीका मानते हों, तो में Gandhi Heritage Portal