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चम्पारन समितिको बैठककी कार्यवाहीसे

अपनी शर्तोंपर ये छूट दे रहे हैं, वहाँ इस प्रस्तावके अन्तर्गत वे एक अदालत द्वारा निश्चित की गई शर्तें स्वीकार करनेको बाध्य होंगे।

सभापतिने कहा कि श्री गांधी जो तर्क रख रहे हैं वह तो यह कहनेके समान है कि चूँकि रैयतपर भूतकालमें जुल्म हुए हैं इसलिए न्यायसंगत लगान-भर देकर उसे छुट्टी मिल जानी चाहिए, यह तर्क मुझे ठीक नहीं प्रतीत होता।

इसके बाद बैठक स्थगित हो गई।

[अंग्रेजीसे]
सिलेक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १५८, पृष्ठ २९६-३००।
 

३८३.चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

अगस्त ११, १९१७

पिछले दिनकी बहसको जारी करते हुए श्री गांधीने कहा कि शरहबेशीके रूपमें जो रकम ली जाती है वह औसतन लगानका ५० प्रतिशत होती है। राजा कीर्त्यानन्दने जो टिप्पणी समितिके सदस्योंको भेजी है उसमें शरहवेशी खत्म करके उसकी जगह लगानमें रुपयेमें ४ आने बढ़ानेका, और मूल्योंमें होनेवाली वृद्धिको ध्यान में रखते हुए साधारण बढ़ोतरी करनेका सुझाव दिया है। उन्होंने कहा, मैं अपने साथी सदस्योंके विचारोंको यथासम्भव माननेके लिए उत्सुक हूँ, और मूल्योंमें वृद्धि होनेपर लगानमें जो बढ़ोतरी होती है उससे ऊपर थोड़ी-बहुत और बढ़ोतरीकी बात माननेको तैयार हूँ, लेकिन मैं लगानमें दण्डस्वरूप बढ़ोतरी करनेका समर्थन नहीं करूँगा। सबसे ज्यादा कठिनाई उस शरहवेशीके सिलसिलेमें होगी जो पहले ही ली जा चुकी है। मेरे विचारमें मूल्य-वृद्धिके कारण जो बढ़ोतरी की जा सकती है, उससे बहुत ज्यादा बढ़ोतरी करना खतरनाक होगा।... अध्यक्षने कहा, प्रस्तावको जैसा मैंने समझा है, वह यह है कि जहाँ काश्तकारीकी शर्तोके अन्तर्गत नील पैदा करनेकी बाध्यता मौजूद थी, या जहाँ उसके एवजमें शरहबेशीकी शर्त मंजूर हुई थी, ऐसे मामलोंमें मूल्य वृद्धि होनेपर लगानमें सामान्यतया जो वृद्धि की जा सकती है, उससे ऊपर थोड़ी और वृद्धि करने दी जाये। यह अतिरिक्त वृद्धि दण्ड-स्वरूप नहीं होगी। उन्होंने कहा, लगानमें कुल वृद्धिको निश्चित राशि निर्धारित कर सकना असम्भव होगा, क्योंकि अभी यही बात अनिश्चित है कि मूल्योंमें वृद्धि होने के कारण लगानमें कितनी वृद्धि करनेकी अनुमति अदालतें देंगी। अतः प्रस्ताव में इस वृद्धिके ऊपर की जानेवाली अतिरिक्त वृद्धिका ही उल्लेख किया जा सकता था। उन्होंने श्री गांधीसे पूछा कि वे कितनी अतिरिक्त वृद्धिके लिए सहमत हो सकते हैं। श्री गांधीने कहा कि रुपयेमें एक आनेसे अधिक नहीं।

 
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