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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

 

(ख) उस शर्तकी माफीके लिए मुआवजेकी एक उचित दर नियत करेगी। इस अदालतके निर्णयके विरुद्ध एक स्पेशल जजके सामने अपील की जा सकेगी। मुआवजेको रकमकी वसूली एकमुश्त नहीं होगी, बल्कि लगानमें वृद्धिके रूपमें होगी।
मुआवजेके रूपमें उचित लगान निश्चित करते समय अदालतको चाहिए कि वह――
(क) तिनकठियाके अन्तर्गत रैयतको अबतक होनेवाली हानिपर, और――
(ख) समान परिस्थितियोंमें मुआवजेके तौरपर बढ़ी हुई लगानकी जो दरें वास्तवमें दी जा रही हैं, उनपर विचार करे, और――
(ग) नियत की गई कुल लगानकी दर अनुचित और अन्यायपूर्ण तो कदापि न हो। वृद्धिकी रकम यदि २५ प्रतिशतसे अधिक बैठती हो तो दर क्रमशः बढ़ाई जाये।

श्री गांधीने कहा, मैं कानूनी मुद्दोंमें नहीं पड़ना चाहता। मैं तो इस प्रश्नपर न्यायकी दृष्टिसे विचार करना चाहता हूँ। उक्त प्रस्तावका परिणाम यह होगा कि प्रत्यक्ष बन्दोबस्तके अधीन आनेवाले गाँवोंकी रैयत निलहे गाँवोंकी रैयतकी अपेक्षा ज्यादा अच्छो स्थितिमें हो जायेगी, हालाँकि निलहे गाँवोंकी रैयतने ही विगत कालमें यह अन्यायपूर्ण भारी बोझ सहन किया है। मेरे विचारमें समितिने इस प्रथाकी बुराईको सही ढंगसे समझा नहीं है। सरकारने यह बात कभी स्वीकार नहीं की थी कि रैयतके लिए नील/उपजाना अनिवार्य होगा, और तमाम कागजातोंसे पता चलता है कि तिन-कठिया प्रथा और उससे सम्बन्धित अन्य बातें रैयतपर एक तरहका असह्य बोझ थीं। उक्त प्रस्तावसे रैयतको मुक्ति नहीं मिलती; उलटे, यह तो बागान-मालिकोंके लिए मुँह-माँगी मुराद जैसा है। अब तो बागान-मालिक हो नीलकी खेती छोड़ना चाहते हैं, क्योंकि अब जो भी स्थिति हो, जब अन्य फसले की खेती आरम्भ की गई उस समय नीलकी खेती लाभदायी नहीं रह गई थी। मैंने मसलेपर जमींदारोंके दृष्टिकोणसे भी विचार किया है जैसा कि तावानके मामलेमें किये गये मेरे समझौतेसे स्पष्ट है। वर्त्तमान प्रश्नपर मैं मुकर्ररी गाँवोंकी रैयतको ठेकेवाले गाँवोंकी रैयतसे अलग नहीं कर सकता। दोनों एक जैसी ही स्थितिमें थे, और उनके बारेमें एक ही नीति होनी चाहिए। इसलिए मैं कानूनको साधारण व्यवस्थाके अनुसार लगानमें वृद्धि करनेके सिवा और कोई बात स्वीकार नहीं कर सकता, और तिन कठियाके बदले कोई विशेष वृद्धि करनेका विरोध करता हूँ। किसी विशेष अदालत द्वारा निपटारा होनेमें कई महीने लगेंगे, जो वर्त्तमान विक्षोभजनक दशाओंको देखते अवांछनीय है। एक तात्कालिक और सहज उपचारकी आवश्यकता है, और मेरे इस सुझावमें उक्त दोनों ही बातें शामिल हैं। मेरा सुझाव है कि मूल्योंमें वृद्धिके आधारपर एक निश्चित दरके हिसाबसे, अर्थात् सभी मामलोंमें रुपयेमें ३ आनेकी दरसे लगान बढ़ाया जाये।

सभापतिने कहा कि निलही रैयतको गैर-निलही रैयतसे तुलना करते समय यह बात ध्यानमें रखनी होगी कि, जिन गाँवोंमें अबवाब लिया जाता है, वहाँ वह शरहबेशीसे ज्यादा होता है, और जहाँ अबवाब नहीं लिया जाता (जैसे मधुबन राज्यमें), वहाँ