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पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

 

...श्री गांधीने कहा चूँकि जुर्मानेके मामले बहुत कम होते हैं, इसलिए ऐसे मामले भी बहुत थोड़े होंगे जिनको लेकर जमींदारको अदालत जाना पड़े। उनके विचारमें रैयतके ऊपर जमींदारोंकी सत्ता इतनी अधिक है कि अदायगीको निश्चित रूपसे स्वैच्छिक बनाना कठिन होगा। कुछ बहसके बाद श्री रीडके सुझावपर यह तय हुआ कि क्षतिका अनुमान लगानेका काम पंच-निर्णयपर छोड़ दिया जाये।...

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १५६, पृष्ठ २९३-४।
 

३८१. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

मोतीहारी
श्रावण बदी ७, [अगस्त ९, १९१७]

चि० [मथुरादास,]

तुम्हारा पत्र मिला था। वह खो गया और मैं अपने काममें ऐसा डूबा रहा कि फिर भूल ही गया। जन्म और मृत्युका हिसाब मैं अब मुश्किलसे ही रख पाता हूँ। ऐसी बातोंमें मैं अब कुटुम्बके कामका नहीं रहा। [जन्म-मरणके] इस ज्वार-भाटेका असर भी अब मेरे मनपर कदाचित ही होता है। इन दिनों हमारे कुटुम्बमें यह तीसरी मृत्यु हुई है। खबर सुनकर क्षणभर विचारमें पड़ जाता हूँ और फिर भूल जाता हूँ। मुझे यह स्थिति अनायास ही प्राप्त हो गई है; किन्तु ऐसा लगता है कि वह प्राप्तव्य है। मरण वर्त्तमान स्थितिका अनिवार्य परिवर्तन ही तो है। उससे डरना क्यों चाहिए? जन्म भी इसी प्रक्रियाका चिह्न। उसमें भी प्रसन्न होनेका कोई कारण नहीं दिखता। हम इन दोनों स्थितियोंसे, अपने लिए और संसारके लिए, मुक्ति चाहते हैं। इसीको परम-पुरुषार्थ कहा गया है। ऐसी बात है; तब ... को क्या आश्वासन दूँ? ... धर्म-ध्यान आदिमें रुचि रखती है। इस धर्मका रहस्य समझनेका उसे यह एक सुअवसर प्राप्त हुआ है।

मोहनदासके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीनी विचारसृष्टि