३७५. पत्र: जमनालाल बजाजको
मोतीहारी
श्रावण शुक्ल १ [जुलाई २८, १९१७][१]
आपका खत और हुंडी रूपैया १५०० की मीली है। मैं ऋणी हुआ हुं आपका दान हिंदी शिक्षा प्रचारमें ही रखा जायेगा। यदि दूसरे कोई इसीहि कामके लीये सिर्फ भेज देंगे और कुछ धन बचेगा तो आपका दान दूसरे कार्योंमें भी खर्चा जायगा।
मेरा फीर वर्धा आने का होगा तो खबर दे दूँगा।
आपका,
मोहनदास गांधी
गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल पत्र (जी० एन० २८३३) की फोटो-नकलसे।
३७६. शरहबेशीके सम्बन्धमें चम्पारन-समितिके सदस्योंके नाम गुप्त टिप्पणी
बेतिया
जुलाई २९, १९१७
मेरा विनम्र मत है कि (१) समिति बननेकी वजह तिनकठिया पद्धतिकी बुराइयाँ हैं; (२) समितिका मुख्य कार्य न्यायपूर्ण ढंगसे उसका हल निकालना है; और (३) उससे ऐसी सिफारिशोंकी आशा की जाती है जो इस मामलेका एक स्थायी हल दे सके, जमींदारों या ठेकेदारों और रैयतके बीच फिरसे अच्छे सम्बन्ध स्थापित कर सके और आगे चलकर मुकदमों या अन्य किसी रूपमें विवाद खड़ा न होने दे।
यदि तिन-कठियाको किसी अदायगीके एवज़में हटाया जाता है तो यह समिति द्वारा अपने प्राथमिक कर्त्तव्यकी उपेक्षा करना कहलायेगा। तिन-कठिया पद्धतिको लेकर एक मुकदमा भी चल रहा है और फिर भी यह समिति नियुक्त की गई है। समितिके पास यह जाननेके लिए अनेकानेक प्रमाण मौजूद हैं कि तिन-कठियाने रैयतको अपनी लपेटमें इस तरह कस लिया है जैसे नाग किसीको अपने पाशमें कस ले। रैयत, तरीके वैधानिक हों या नहीं, अपने-आपको इससे मुक्त करनेकी कोशिश शुरूसे करती आ रही