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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

कानूनके मुताबिक तो लगान-वृद्धिके अधिकांश मामलोंमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।

तावान――सभी सहमत हुए कि तावानकी प्रथा अन्यायपूर्ण है और उसे आगेके लिए बन्द कर दिया जाना चाहिए। तब इस प्रश्नपर चर्चा हुई कि जहाँ वह वसूल किया जा चुका हो वहाँ क्या कार्रवाई की जानी चाहिए। श्री गांधीने कहा कि जहाँ उसकी अदायगी हो चुकी है वहाँ तो कोई भी कार्रवाई नहीं की जा सकती, परन्तु फैक्टरियोंसे कहा जाना चाहिए कि इस खातेमें जितनी भी बकाया रकम पड़ी हो उस सबको वे रद कर दें। उन्होंने यह माना कि यह बात केवल उन फैक्टरियोंपर लागू की जा सकती है जो बॉण्ड लेनेवाले व्यक्तियोंकी निजी सम्पत्ति हों और जो इस बीचमें बेच न दी गई हों। कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स इस व्यवस्थाको करनेसे इनकार करने वाले ठेकेदारोंके पट्टोंका नवीनीकरण करनेसे इनकार करके उसे लागू कर सकती है। अन्य सदस्योंने महसूस किया कि इस प्रस्तावको माननेमें कुछ कठिनाइयाँ हैं, जिनपर अधिक विचार करने की जरूरत है। श्री गांधीके प्रस्ताव थे:――

१. कोर्ट ऑफ वॉड्स ठेका पद्धतिको और अधिक न बढ़ाये।

२. यदि राज्य वर्तमान ठेकोंके पट्टोंका नवीनीकरण करनेका फैसला करे तो उनमें उसे समितिको सिफारिशोंको लागू करनेवाली शर्तें शामिल करनी चाहिए; शामिल की जानेवाली शर्तोंमें ये शर्तें हों:――

१. स्वैच्छिक पद्धतिके अतिरिक्त अन्य कहीं भी नीलकी खेती नहीं की जायेगी;
२. अबवाब नहीं लिये जायेंगे;
३. किसी भी प्रकारका हर्जाना या तावान नहीं लिया जायेगा।

ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिये गये।

[अंग्रेजीसे]
सिलॅक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १५२, पृष्ठ २८७-९।