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चम्पारन समितिके सम्मुख गवाहीमें प्रश्न

 

“यदि श्री गांधीको देशके उस क्षेत्रमें उतने ही लम्बे अर्से तक रहनेका अनुभव होता (मैं ३५ वर्षोंसे रह रहा हूँ) तो वे भली प्रकार समझ गये होते कि चम्पारनकी रैयत कितनी ज्यादा झूठी है।” चम्पारनको रैयतमें कई सद्गुण भी हैं; लेकिन उन सद्गुणोंमें सच बोलना नहीं आता। 'पायनियर' को लिखे गये उनके पत्रसे पहले उसके खिलाफ एक भी शिकायत नहीं की गई थी।

श्री गांधीने कहा कि श्री हेकॉक (कलक्टर) द्वारा तैयार किये गये सारांशको देखनेसे लगता है कि पिछले चार वर्षके दौरान २० विभिन्न गाँवोंसे फैक्टरीके खिलाफ २७ प्रार्थनापत्र भेजे गये थे।

गवाहने कहा, उसके नीचे ३० हजार काश्तकार हैं, और यदि चार वर्षोंके दौरान कुल २७ प्रार्थनापत्र भेजे गये तो उसे उनकी जानकारीका न दिया जाना स्वाभाविक ही है।

गवाहसे अगला प्रश्न दमनके कुछ खास मामलोंके बारेमें पूछा गया। कहा गया था कि उनमेंसे एकमें गवाहने लखनरायकी फसल बरबाद कर दी थी।[१]

गवाहने बतलाया कि उसने नवम्बर १९१४ में एक सरकारी नीलाममें एक काश्तकार आलमकी जमीन खरीदी थी जिसका कुछ भाग एक शिकमीके रूपमें लखनरायके नामपर था, लेकिन प्रमाणीकरणके समय लखनरायने बन्दोबस्त अधिकारीसे कहा था कि वह अब शिकमी नहीं रह गया है। गवाहने अपने कथनके सबूतके तौरपर एक प्रमाणीकृत प्रति पेश की। उस समय उस जमीनपर जईकी फसल खड़ी थी और उसने लखनरायको उसका आधा भाग दे दिया था। फिर पिछली मईमें उसने पूरी जमीनको नीलकी खेतीके लिए तैयार करनेका आदेश दिया था और तब पता चला कि उस जमीनके एक कोनमें लखनरायने दो कट्ठोंमें चेना बो दिया था। लखनरायको इसका कोई हक नहीं था, इसलिए गवाहके आदमियोंने पूरी जमीनपर हल चला दिया। फसल बहुत ही मामूली किस्मकी थी और नुकसान भी बहुत ही मामूली हुआ था।

दूसरी घटनाके बारेमें पूछे जानेपर, गवाहने स्वीकार किया कि उसमें उससे कुछ गलती हो गई थी। उसने घटनाका विवरण बतलाते हुए कहा कि पिछली मईकी २३ तारीखको उसके गुमाश्तेने खबर दी कि फैक्टरीकी तीन गाड़ियाँ बटाई भूसेका फैक्टरीका आधा हिस्सा लेने, वादी पक्षके गाँव गई थीं। वहाँ बटाईदारके बहकावेमें आकर गाड़ीवालोंको मारा-पीटा गया और गाड़ियोंका भूसा गिरा दिया। गवाहने स्वीकार किया कि वे लोग जब उसके पास आये, तो उसने उनके पैरोंमें अपने घोड़ेकी पतलीसी चाबुक मारी थी, लेकिन उस समय वह बहुत क्रोधमें था। लोगोंने उसके आदमियोंपर बुरी तरह हमला किया था। यह भी सही था कि उसने उनपर जुर्माने करनेकी धमकी दी थी, लेकिन जुर्माने वास्तवमें किये नहीं। उसने कहा कि यह बात बिलकुल झूठ है कि उन लोगोंको उसके मुर्गीखानेमें बन्द कर दिया गया था। उन लोगोंको तो मुर्गीखानेके पास भी नहीं ले जाया गया।

  1. १. देखिए “पत्र: डब्ल्यू० एस० इर्विनको”, २४-५-१९१७।