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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बिना और प्रत्येक विचारणीय पहलूपर उपयुक्त विचार किये बिना कोई कदम नहीं उठाऊँगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया ) से; सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १५०, पृष्ठ २८०-१ से भी।

 

३७३. चम्पारन-समितिके सम्मुख गवाहीमें प्रश्न[१]

मोतीहारी
जुलाई २६, १९१७

चम्पारन कृषि जाँच-समितिने आज केवल एक ही गवाह, मोतीहारी लिमिटेडके प्रबन्धक, श्री डब्ल्यू० एस० इविनसे जिरहको। अध्यक्षके पूछनेपर गवाहने बतलाया कि उसके प्रतिष्ठानमें छः फैक्टरियाँ हैं। प्रतिष्ठानमें पहले नीलका काम होता था, लेकिन अब नहीं होता। उसने १९११ में तावान या शरहवेशी लेकर तिन-कठिया पद्धतिको बदल दिया था। तिन-ऋठिया पद्धतिमें हरएक काश्तकारको अपनी भूमिके तीन कट्ठोंमें[२] नीलकी खेती अनिवार्य रूपसे करनी पड़ती थी। रैयतके हर काश्तकारके लिए यह अनिवार्य था। गवाहने मुकर्ररी गाँवोंमें शरहबेशी और ठेकेदारी गाँवोंमें तावानकी वसूली की थी।

यह पूछनेपर कि क्या उसका कहना यह है कि राज्यने एकाधिकारका उपयोग करने दिया इसलिए उन्हें एकाधिकारका हक मिल गया――गवाहने कहा कि राज्यने तो उससे कहीं ज्यादा ही लिया था जितना कि उनके पट्टोंको शर्तोंके मुताबिक वसूल करनेकी अनुमति थी। उसने जब यह कहा कि सरकारने इस अधिकारको मान्यता दी थी, तब उसका यह मतलब था कि सरकारकी ओरसे कोई आपत्ति नहीं की गई थी। चूँकि राज्यने कहा था कि जबतक नीलकी खेती होती रहती है तबतक लगान नहीं बढ़ाया जा सकता, पट्टोंकी शर्तोंके मुताबिक वसूली करनेमें राज्यकी मूक सहमति थी।

इसके बाद गवाहने जुर्माने करने और मजदूर रखनेके बारेमें उसी प्रकारका बयान दिया जैसा अन्य गवाहोंने दिया था।

गवाहने श्री गांधीसे कहा कि उसने किसी भी व्यक्तिपर ५०० रुपयेसे अधिक जुर्माना नहीं किया। श्री गांधीने कहा कि एक आदमी ऐसा है जो कहता है कि गवाहने उसपर एक हजार रुपये जुर्माना किया था। इसपर गवाहने कहा:

  1. १. जाँच समितिके समय-समयपर प्रकाशित होनेवाले विवरणोंमें से यह विवरण नमूनेके तौरपर पूरा उद्धृत किया जा रहा है।
  2. २. कट्ठा――एक बीघेके बीसवें भागके बराबर भूमिकी माप।