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पत्र: रंगून यात्री-कष्ट समितिके सचिवको

दीर्घायु हो, तुम्हारा स्वास्थ्य बना रहे तथा तुम परिवार, देश और जगत्के लिए आदर्श रूप हो।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७२१) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

३७१. पत्र: रंगून यात्री-कष्ट समितिके सचिवको

मोतीहारी
जुलाई २५, १९१७

सचिव

यात्री कष्ट-समिति
रंगून

महोदय,

मैं आपकी समितिके विचारार्थ उसमें प्रस्तुत विषयके सम्बन्धमें संलग्न टिप्पणी भेज रहा हूँ।

आपका विश्वस्त,

[सहपत्र]

टिप्पणी

भाग१

शिकायतें

हस्ताक्षरकर्त्ताको पिछले २५ वर्षोंके दौरान संसारके कई भागोंमें की गई यात्राका यथेष्ट अनुभव है।

हस्ताक्षर-कर्ताको १९०१में[१] और फिर १९१५ में [२] बर्माकी यात्रा करनेका अवसर मिला था। हस्ताक्षरकर्त्ता लगभग ४ वर्ष पहले तक सदा ही नियमपूर्वक पहले दरजेमें यात्रा किया करता था। इसके बादमें उसने सदा एक डेक-यात्रीके रूपमें यात्रा की है। हस्ताक्षरकर्त्ताकी रायमें:――

(१) कम्पनीके कर्मचारी या पुलिस कर्मचारी ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेवीगेशन सर्विसके जहाजोंपर यात्रा करनेवाले डेक-यात्रियोंकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते।
(२) यात्रियोंको जैसे-तैसे डेकपर ठूँस दिया जाता है, उनके साथ अशिष्टतापूर्वक बात की जाती है, अभद्र शब्दोंका प्रयोग किया जाता है और उनपर अक्सर हाथ भी उठाया जाता है।
  1. १. वस्तुत: १९०२ में, देखिए खण्ड ३, पृष्ठ २४२-४३।
  2. २. देखिए “पत्र: बी० आई० एस० एन० कम्पनीके एजेंटको”, १९-३-१९१५।
१३-३१