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३६७. पत्र: मगनलाल गांधीको

मोतीहारी
आषाढ़ बदी ११, संवत् १९७३ [जुलाई १५, १९१७]

चि० मगनलाल,

वहाँ जिस प्रकारका, जो कपड़ा तुम बचा सकते हो उसको सन्दूकमें रखकर मोतीहारी भेजना।

[कपड़ेको] कटवाकर प्रति गजके हिसाबसे कीमत लिख भेजना और प्रत्येकके ऊपर गोंदसे चिट चिपका देना भी ठीक होगा। धोतियाँ, ४० इंच और ५० इंचकी दस-दस गज लम्बी, जितनी भेज सको उतनी चाहिए। हाथ पोंछने और नाक पोंछनेके लिए रुमाल चाहिए। खुरदरा कपड़ा भी चाहिए। टोपियोंकी भी आवश्यकता है। क्या वहाँ रहनेवाली स्त्रियोंसे यह काम नहीं लिया जा सकता? उन्हें कुछ मजूरी देना। टोपियाँ हाथकी बनी हुई होनी चाहिए, भले ही उनके दाम अधिक हों। क्या तुम्हें सन्तोकके नाम लिखा हुआ मेरा पत्र[१] मिला? उसकी प्राप्तिकी सूचना नहीं मिली। भाई फूलचन्दसे कहना कि वे मुझे हर सप्ताह आँकड़े न भेजा करें। जानने योग्य ही भेजा करें तो काफी है।

१. स्वामीजी हिन्दी कितनी और कैसी सिखा पाते हैं?
२. हिन्दी सीखने कितने लोग आते हैं?
३. तुमने शहर में वर्ग खोला है?
४. आनन्दशंकरभाई वापस आनेवाले थे; क्या वे आ गये? उन्होंने [हिन्दी] सिखाना शुरू किया?
५. दूसरी जमीन खरीदनेकी बात थी, उसका क्या हुआ?
६. छोटालाल रसोईके कार्यसे बिलकुल मुक्त हो सका है या नहीं? इन सब प्रश्नोंका उत्तर भाई फूलचन्द अथवा तुम देना।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७१९) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

 
  1. १. उपलब्ध नहीं है।