हम प्रायः देखते हैं कि हमारी अनेक संस्थाओंमें वर्णिक वृत्ति छाई है। पर
इसे हमें गौण स्थान देना चाहिए। और (साहसपूर्ण) क्षात्रवृत्तिको, (दीर्घ दृष्टिवाली) ब्राह्मणवृत्तिको, और मुख्य रूपसे (सेवा-परायण) शूद्रवृत्तिको प्रधानता देनी चाहिए। इसकी आज आवश्यकता है।
{Left|[गुजरातीसे]
महात्मा गांधीजीनी विचारसृष्टि}}
३६६. पत्र: एस्थर फैरिंगको
मोतीहारी
जुलाई १४, १९१७
अभी रांचीसे लौटनेपर तुम्हारा पत्र देखा।
तुमने शाकाहार आरम्भ कर दिया है यह तुमने मुझे कभी नहीं लिखा। मुझे विश्वास है कि धार्मिक महत्त्वकी बात छोड़ दें तो भी यह इस जलवायुके लिए उपयुक्त है। नया शाकाहारी अपने सामिष आहार-कालमें दाल, मक्खन, पनीर और दूध जिस परिमाणमें खाता था उससे उसे अधिक खानेके लिए कहा जाता है। यह भूल है। दालें कम ही खाई जायें। यदि दूध पर्याप्त मात्रामें पिया जाये तो फिर बहुत कम मक्खन खानेसे काम चल जाता है।
मेरी सम्मतिमें अनावश्यक चीजें रखना ठीक नहीं है; यह मानी हुई बात है कि जिसके पास ऐसी चीजें होंगी उसे जिन्हें इन चीजोंका लोभ हो उन लोगोंसे उनकी रक्षा करनी होगी। इसके लिए सावधानी और सँभालकी आवश्यकता होती है, जिसका सदुपयोग हम अन्य अधिक महत्त्वपूर्ण मामलोंमें कर सकते हैं। और फिर हम चीजोंके प्रति अपने-आपको कितना ही निर्मोही क्यों न मानें, उनके खो जानेकी मनमें कसक बनी रहती है।
समितिकी बैठक सोमवारको आरम्भ होगी।
तुमने मेरी पत्नीको बहुत सोच-विचार कर जो उपहार भेजे हैं उन्हें देखकर मुझे प्रसन्नता हुई है।
तुम्हें हम सबका प्यार।
तुम्हारा,
बापू
माई डियर चाइल्ड