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पत्र: वाइसरॉयके निजी सचिवको

 

जमीन और इमारतोंका एक न्यास बना दिया जायेगा। विविध विभागोंके खर्चका सही हिसाव रखा जा रहा है और दानी महानुभावोंको विवरण भेजा जायेगा।

यदि पत्रोंकी मारफत सहायताके लिए अपील किये बिना काम चले तो मैं अभी ऐसी अपील करना नहीं चाहता। अभी ये प्रवृत्तियाँ इतनी प्रगति नहीं कर पाई हैं कि ऐसी अपील करना वांछनीय हो। किन्तु मुझे उन लोगोंसे जो मुझसे व्यक्तिशः परिचित हैं, विश्वासपूर्वक यह प्रार्थना करनेमें कोई झिझक नहीं है कि वे मुझे या तो स्वयं सहायता दें या अपने मित्रोंको सहायता देनेकी सलाह दें।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त टाइप किये हुए मूल अंग्रेजी परिपत्र (जी० एन० ६२९७) की फोटो-नकल से; दफ्तरी प्रति (एस० एन० ६३७८) की फोटो-नकलसे भी।

 

३६१. पत्र: वाइसरॉयके निजी सचिवको

बांकीपुर
जुलाई ७, १९१७

प्रिय श्री मैफी,

मैं चम्पारन समितिके कार्यके सिलसिलेमें रांची रवाना हो चुका हूँ और रास्तेसे यह पत्र एनी बेसेंट-सम्बन्धी आन्दोलनके सम्बन्धमें लिख रहा हूँ। चूँकि मैं इस आन्दोलनके नेताओंसे सम्पर्क रखे हुए हूँ, उनका ध्यान इस सम्बन्धमें अपने विचारोंकी ओर आग्रहपूर्वक खींच रहा हूँ,[१] और इसलिए एक प्रकारसे इस आन्दोलनमें भाग ले रहा हूँ, मैं यह अनुभव करता हूँ कि मुझे वाइसरॉय महोदयके समक्ष वस्तुस्थिति और इस आन्दोलनमें अपनी स्थिति स्पष्ट कर देना आवश्यक है।

मेरी विनीत सम्मतिमें ये नजरबन्दियाँ करना एक बहुत बड़ी भूल हुई है। इनसे पहले मद्रासमें पूर्ण शान्ति थी। अब वहाँ भारी उथल-पुथल है। भारतने समग्र रूपसे श्रीमती बेसेंटका साथ नहीं दिया था; किन्तु अब वे अपने तरीकोंको भारतसे बहुत हदतक मनवा चुकी हैं। बहुत थोड़ा-सा अवकाश पाकर मैं उस संस्थाके कार्यसे अहमदाबाद गया था, जिसे चला रहा हूँ। वहाँसे लौटते हुए मैं बम्बई और इलाहाबाद रुका और तब मुझे स्थितिका कुछ अनुमान हुआ। मैं स्वयं श्रीमती बेसेंटके तरीकोंको अधिक पसन्द नहीं करता। मुझे लड़ाईके दिनोंमें राजनैतिक प्रचार करनेका विचार पसन्द नहीं आया है। मेरी विनम्र सम्मतिमें, हमारा संयम ही सर्वोत्तम प्रचार होता, किन्तु समस्त देश मेरे विरुद्ध है। और श्रीमती बेसेंटने त्याग किया है, और वे भारतसे प्रेम करती हैं या उनकी इच्छा पूर्णतः वैध कार्य करनेकी है, इससे कोई

  1. १. देखिए “पत्र: जे० बी० पेटिटको”, ३०-६-१९१७।