[काम करनेवाली] बाईको और अधिक समयके लिए रोका; इसमें कोई हर्ज नहीं। मुझे फकीराकी ओरसे पत्र मिला। उसके उत्तरमें[१], मैंने उसे वहाँ जानेके लिए लिखा है। तुम्हें तथा छोटालालको रसोई आदि फुटकर कामोंसे मुक्त होना ही चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है, उसके बिना हम बुनाईके काम में आगे नहीं बढ़ सकते। यह कैसे सम्भव हो सकेगा, यह सोचना तुम्हारा काम है। सत्यदेवजीको [२] चक्कीके काममें लगाना। उन्हें मिर्चे देकर ठीक ही किया। हमारा उन्हें खानेके लिए मिर्चे दे देना भी यज्ञ है। देखें, यह फलीभूत होता है या नहीं। मेरा खयाल है केवल स्वास्थ्यके कारण यदि कोई मिचें खाता है तो चिन्ताकी कोई बात नहीं। यज्ञ करते समय मन प्रफुल्लित रहना चाहिए। हमने अच्छा समझकर ही इतना सब किया है और उसी उद्देश्यको ध्यानमें रखकर, उल्लसित मनसे उन्हें [मिचें] देंगे।
साथकी कतरन सँभालकर रखनेके लिए भेज रहा हूँ। तुमने वहाँ ‘पाटलिपुत्र’ मँगाया होगा। ‘प्रताप’ सबसे अच्छा समाचारपत्र माना जाता है, यह बात मुझे प्रयागमें मालूम हुई। यह भी मालूम हुआ कि उसका सम्पादक बहुत ही निःस्वार्थ व्यक्ति है[३]
बापूके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७२०) से।
सौजन्य: राधाबेन चौधरी
३५९. पत्र: फूलचन्द शाहको
मोतीहारी
आषाढ़ सुदी १३ [जुलाई ३, १९१७][४]
इसके साथका पत्र[५] आप सब पढ़ें और फिर पूंजाभाईको दे दें। और प्रतियाँ तैयार होती जा रही हैं। सम्भव है पत्रके आँकड़ोंमें फर्क हो । यदि हो तो मुझे सुधारकर सूचित कर देना। विचार और तर्क आदिमें कुछ कहने योग्य हो तो कहना। कल एक प्रति अम्बालालभाईको[६] भेजी। पूंजाभाईके लिए आज भेज रहा हूँ। अन्य प्रतियाँ कल भेजी जायेंगी। फिर भी आपकी राय मैं माँगता हूँ। अंग्रेजी प्रति भी तैयार हो रही है।[७]
- ↑ १. उपलब्ध नहीं है।
- ↑ २. स्वामी सत्यदेव परिव्राजक; आश्रमके हिन्दी शिक्षक।
- ↑ ७. गणेशशंकर ‘विद्यार्थी’; जो कानपुरके हिन्दु-मुस्लिम दंगे (१९३१) में बलि हुए।
- ↑ ३. गांधीजी इस दिन मोतीहारीमें थे।
- ↑ ४. देखिए “आश्रम कोषके लिए परिपत्र”, १-७-१९१७
- ↑ ५. अम्बालाल साराभाई, अहमदाबादके एक उद्योगपति जिन्होंने गांधीजीके कार्य-कलापोंमें गहरी दिलचस्पी ली थी।
- ↑ ६. देखिए अगला-शीर्षक।