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आश्रम कोषके लिए परिपत्र
है। हिन्दीके द्वारा करोड़ों व्यक्तियोंमें आसानीसे काम किया जा सकता है। इसलिए उसे उचित स्थान मिलनेमें जितनी देर हो रही है उतना ही देशका नुकसान हो रहा है। इस नुकसानको रोकने का प्रयत्न देशमें किया जा रहा है। आश्रमकी प्रवृत्तिसे इस दिशामें सहायता मिलेगी। उसमें सबसे पहला कदम मुख्यतः हिन्दी-शिक्षक प्राप्त करने और उन्हें शिक्षण देनेका है। मेरा खयाल है इस कार्य में कमसे कम हर महीने २०० रुपयेका खर्च आयेगा।
पाँचवी प्रवृत्ति केवल उन राजनैतिक विषयोंको हाथमें लेनेकी है जिनमें मेरी कुछ पैठ हो। उसमें केवल मेरा और मेरे साथ घूमनेवाले के रेल भाड़ेका खर्च है। यह मुश्किलसे १०० रुपये प्रति मास होगा। इस राशिको प्राप्त करनेके लिए अभी तक कुछ प्रयास नहीं करना पड़ा है फिर भी यहाँ लिख देता हूँ।
इस प्रकार हर महीने खर्च आता है : रुपये
व्यवहारके लिए ४००
बुनाईके कामके लिए १००
पाठशाला के लिए ५००
हिन्दी भाषा प्रचारके लिए २००
मेरे रेल-खर्चके लिए १००
  ———
  लगभ १,३००

राष्ट्रीय पाठशालाका खर्च अभी बढ़ेगा। इसलिए, यदि सारी प्रवृत्तियोंपर १,५०० रुपये के खर्चका अनुमान लगायें तो इसमें अतिशयोक्ति न होगी।

इन कार्योंके लिए विस्तृत भूमिकी आवश्यकता है। वैसी लगभग ५५ बीघे जमीन साबरमतीके किनारे, साबरमती जेलके पास ली गई है। दूसरी [जमीन] लेनेके प्रयत्न अभी जारी हैं। उसमें बुनाईके कामके लिए कारखाना, आश्रममें रहनेवालों के लिए कमरे, रसोईघर तथा राष्ट्रीय शालाके लिए मकान बनाये जायेंगे। इसमें १,००,००० रुपये खर्च होनेकी सम्भावना है। भारत सेवक समाजके[१] भाई अमृतलाल ठक्करने मकान बनाने के कामकी देखरेखका दायित्व अपने ऊपर लिया है।

इस तरह मेरी जरूरतें मकानपर तथा एक वर्षके दौरान होनेवाले खर्चके आँकड़ों को मिलाकर १,१८,००० रुपयेकी होती हैं। जमीनका खर्च मेरे पास जमा रुपयोंमें से किया गया है। इस जमीन और मकानका ट्रस्ट बनाना है।

उपरोक्त साहसिक योजना यदि आपको पसन्द हो तो मुझे आपकी सहायता लेनी होगी; आपको भी यथाशक्ति मेरी सहायता करनी होगी तथा लोगोंसे भी इसके लिए कहना होगा। यदि आपकी इन सब प्रवृत्तियों में से अमुक प्रवृत्तिके लिए सहायता करनेकी इच्छा होगी तो आपके [द्वारा दी गई] रकम उसीपर व्यय की। लेकिन अगर मेरी समस्त प्रवृत्तियोंमें पागलपनके सिवा आपको और कुछ दिखाई न दे

  1. सवेंटस ऑफ इंडिया सोसाइटी।