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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नुकसान नहीं होना चाहिए। फिलहाल इसपर एक सौ रुपये मासिक खर्च आता है।

तीसरी प्रवृत्ति राष्ट्रीय पाठशालाकी है। आश्रममें रहनेवालोंकी यह मान्यता है कि जबतक राष्ट्रीय पद्धतिके अनुरूप शिक्षा नहीं दी जायेगी तब तक देशका बहुत ज्यादा नुकसान होता रहेगा। इसलिए प्रयोगके तौरपर राष्ट्रीय पाठशाला आरम्भ की गई है। इसमें उद्देश्य यह है कि मातृभाषाके माध्यमसे और आसान तरीकेसे ऊँची शिक्षा दी जाये। यदि प्रयोग सफल रहा तो सरकारसे ऐसी शिक्षा देनेकी माँग करनेका और इसके लिए निरन्तर प्रयत्न करनेका उद्देश्य भी इसमें शामिल है। यदि हम लोगोंको प्रयोगकी सफलता दिखा सके तो उनके द्वारा निजी तौरपर ऐसे अन्य प्रयोगोंके शुरू किये जानेकी भी काफी सम्भावना है। इस प्रयोगमें मानसिक और शारीरिक शिक्षण देनेकी व्यवस्था है। पाठ्यक्रमके लिए तेरह वर्षकी अवधिकी कल्पना की गई है। इसमें लगभग एक स्नातकको जितनी शिक्षा मिलती है उतनी शिक्षाके अलावा हिन्दी भाषाका ज्ञान, खेती तथा बुनाईका काम भी शामिल है। गुजरात कॉलेजके विज्ञानके भूतपूर्व प्रोफेसर सांकलचन्द शाहने यह प्रयोग करनेका बीड़ा उठाया है। प्रोफेसर शाहने दस वर्ष तक प्रोफेसर गज्जरके[१] साथ काम किया है। उनके साथ मदद करनेके लिए भाई नरहरि परीख, बी० ए०, एलएल० बी०; भाई दत्तात्रेय कालेलकर, बी० ए० ; भाई फूलचन्द शाह, बी० ए०; भाई किशोरलाल मशरूवाला,[२] बी० ए०, एलएल० बी० तथा मेरा भतीजा छगनलाल गांधी है। अभी एक-दो चरित्रवान् शिक्षकोंकी खोज जारी है। संस्कृतके अभ्यासमें अहमदाबादके शास्त्री गिरिजाशंकरजी मदद करते हैं। इस प्रयोगकी देखरेख प्रोफेसर आनन्दशंकर ध्रुव करते हैं और अपनी राय देते हैं। अन्य सुशिक्षित व्यक्तियोंकी मदद भी ली जाती है। शिक्षक अपनी आवश्यकतानुसार वेतन लेते हैं। इस प्रयोगपर फिलहाल हर महीने ५०० रुपया खर्च आता है। इसमें किरायेका समावेश नहीं है क्योंकि वह आश्रमके खर्चमें गिना जाता है। इस समय विद्यार्थियोंकी संख्या बारह है। प्रयोग ऐसी स्थितिपर पहुँच गया है कि अब बाहरके विद्यार्थियोंको लेना शुरू किया जायेगा। अभी तक तो आश्रमके और शिक्षकोंके लड़के ही विद्यार्थी थे।

चौथी प्रवृत्ति हिन्दी भाषाके प्रचारकी है। जो स्थान इस समय अनुचित ढंगसे अंग्रेजी भोग रही है वह स्थान हिन्दीको मिलना चाहिए। इस विषय-पर मतभेद होनेका कोई कारण न होनेपर भी मतभेद होना दुर्भाग्यकी बात है। शिक्षित वर्गको एक भाषा अवश्य चाहिए और वह हिन्दी ही हो सकती प्रोफेसर, बड़ौदा कॉलेज,

  1. १. त्रिभुवनदास कल्याणदास गज्जर (१८६३-१९२०); रसायन शास्त्र के बड़ौदा, पश्चिम भारतमें रसायन उद्योगके प्रणेता।
  2. २. किशोरलाल घनश्यामदास मशरुवाला (१८९०-१९५२ ); रचनात्मक कार्यकर्ता तथा गांधीजीके सहयोगी; गांधीजीके साप्ताहिक पत्र हरिजनके सम्पादक तथा गांधी ऐंड मार्क्सके लेखक।