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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

मैं इतना और कह देना चाहता हूँ कि इस तरीकेमें अन्यायकारीको दण्ड देनेका कोई विचार नहीं आता। इसलिए कोई बदला नहीं लिया जाना चाहिए और न बहिष्कार किया जाना चाहिए। फिर भी, हमें बदलेकी कार्रवाईके रूपमें नहीं, अपने अस्तित्व के नियम के रूपमें, शुद्ध स्वदेशी व्रतका पालन करना चाहिए। भारतीय होनेके नाते अन्य वस्तुओंकी तुलनामें भारतीय वस्तुएँ पसन्द करना हमारा नैतिक कर्त्तव्य है।

मुझे आशा है कि हमारी कार्रवाईका स्वरूप जो भी हो, आप और आपके मित्र समयकी अवधिसे सम्बन्धित प्रस्ताव अवश्य स्वीकार करेंगे और हम तबतक दम न लेंगे जबतक सभी नजरबन्द[१] रिहा नहीं कर दिये जाते।

आप इस पत्रको श्री जिन्नाको तो दिखा ही देंगे।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६३६५) की फोटो-नकलसे।

 

३५६. पत्र: एस्थर फैरिंगको

मोतीहारी
जुलाई १, १९१७

प्रिय एस्थर,

मुझे तुम्हारा पत्र अभी मिला। इसमें तुमने लिखा है कि तुमने अपने जीवनके नव वर्षमें प्रवेश किया है, किन्तु कौनसे वर्षमें, यह नहीं लिखा। मैं आश्रममें आनेकी तुम्हारी उत्सुकताको समझता हूँ। मेरी कामना है कि वह तुम्हारी आवश्यकताओंकी पूर्ति करे और वहाँ तुम्हें वही प्रसन्नता, शान्ति और प्रेम मिले जो तुम्हें अपने माता-पिताके घर मिलता। हमने अपने बीतनेवाले हर वर्षको बचाया है या खोया है, यह इस बातपर निर्भर है कि हमने उसका सदुपयोग किया है या दुरुपयोग। हम लोगोंके लिए, जो ईश्वरसे डरते हैं, हर नया साल नई जिम्मेदारीका द्योतक है।

लिखना कि तमिलकी परीक्षा देनेके लिए तुम कौन-सी पुस्तकें पढ़ रही हो और यदि तुमने कोई मुन्शी रखा हो, तो उसे क्या दे रही हो।

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
 
  1. १. श्रीमती बेसेंट और अन्य लोग जो मद्रासमें ५ जूनको गिरफ्तार और नजरबन्द किये गये थे।