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३५४. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

मोतीहारी
जून ३०, [१९१७]

प्रिय श्री शास्त्रियर,

आपके पत्र और डॉ० देवको [मेरे पास] भेजनेके लिए धन्यवाद। मुझे आपका तो प्रोत्साहन चाहिए ही। यदि डॉ० देव जेल न जायें तो कृपया आप इसका कारण मेरे प्रयत्नकी कमी न समझें। वे कल जिला मजिस्ट्रेटसे मिल रहे हैं।

आपने डॉ० सप्रूको[१] जो पत्र लिखा है उसके सम्बन्धमें मैं आपको विस्तारसे लिखना चाहता हूँ; समय मिलनेपर लिखूँगा। तबतक बम्बईके मित्रोंके लिए तैयार किये गये मसविदेकी नकलें भेजता हूँ; सम्भव है, श्री पेटिटको पत्र[२] लिखूँ।

आप अपने शरीरके साथ जो दुर्व्यवहार कर रहे हैं उसके विरोधस्वरूप में एक तीखा पत्र लिखना चाहता हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ६२९५) की फोटो-नकलसे।

 

३५५. पत्र: जे० बी० पेटिटको

मोतीहारी
जून ३०, १९१७

प्रिय श्री पटिट,

जनसाधारणमें जोरदार प्रचार किया जाये। और उसके लिए गाँव-गाँव घूमा जाये, लोगोंसे बातचीत की जाये एवं उनमें परचे आदि बाँटे जायें; बहुत सतर्कतापूर्वक विचार करनेके बाद भी मैं जेल जानेकी दृष्टिसे, इसके सिवा ऐसा दूसरा कार्य जिसे सभी कर सकें नहीं सुझा सकता। इस समय आप, श्री जिन्ना और ऐसे ही अन्य नेता गाँवोंमें जायेंगे तो उसका परिणाम गिरफ्तारीके सिवा दूसरा नहीं हो सकता। यह प्रचार सरकारी प्रतिबन्धके बावजूद जारी रहना चाहिए; इस हद तक वह गैर-कानूनी कहा जा सकता है; किन्तु वह सत्याग्रहीके लिए अवैध नहीं है।

अन्य भी कई तरीके हैं; किन्तु जबतक हम वर्तमान रूपमें सत्याग्रहको थोड़ा पचा न लें, तबतक मैं उनकी सलाह देना नहीं चाहता।

  1. १. सर तेजबहादुर सप्रू (१८७५-१९४९) प्रसिद्ध वकील और राजनथिक।
  2. २. देखिए अगला शीर्षक।