पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/४९१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३५०. पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको

मोतीहारी
जून २९, १९१७

प्रिय श्री हेकॉक,

मैं कल दोपहरको यहाँ आया हूँ। भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के सदस्य डॉ० देवको सोसाइटीकी ओरसे, मैं आगे जबतक चम्पारनमें रहूँ तबतक, अपने साथ काम करनेके लिए नियुक्त किया है। यद्यपि फिलहाल उनकी सेवाओंकी आवश्यकता नहीं है, फिर भी वे मेरी कार्य-पद्धतिका अध्ययन करनेके लिए आये हैं, ताकि जब स्वयंसेवकगण सहायतार्थ गाँवोंमें जायें उस समय उन्हें सुविधा हो सके। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि डॉ० देव, आप जब भी उन्हें समय दें, आपको अपने आगमनकी सूचना देने और आपसे मिलनेके लिए उत्सुक हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया) से; सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १३९, पृष्ठ २४८ से भी।

 

३५१. पोशाकके बारेमें 'पायनियर' को उत्तर

मोतीहारी
जून ३०, १९१७

महोदय,

मैं चम्पारनमें जो थोड़ा-बहुत काम कर रहा हूँ उसकी आपने और श्री इविनने आलोचनाकी और मैं अबतक इस आलोचनाका उत्तर देनेका लोभ संवरण करता रहा हूँ। आपकी हर बातका उत्तर तो मैं इस पत्रमें भी नहीं दूँगा। किन्तु श्री इर्विनने एक बात बिना सही जानकारी पानेका कष्ट उठाये कही है; मैं उसका उत्तर अवश्य दूँगा। उन्होंने मेरे कपड़े पहननेके तरीकेके बारेमें जो कुछ कहा है मेरा अभिप्राय उसीसे है।

‘पाश्चात्य सभ्यताकी छोटी-छोटी सुख सुविधाओंसे परिचित’ न होनेके कारण मैंने अपनी राष्ट्रीय पोशाकका आदर करना सीखा है। और श्री इविनको यह जानने में दिलचस्पी हो सकती है कि मैं चम्पारनमें जो पोशाक पहनता हूँ उसे भारतमें सदा पहनता रहा हूँ। केवल कुछ दिनके लिए अपने अन्य देशवासियोंकी भाँति मैं भी अदालतोंमें और काठियावाड़से बाहर अन्यत्र अर्द्ध-यूरोपीय पोशाक पहननेकी कमजोरीका