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पत्र: एस्थर फैरिंगको

स्वयं उस समाचारमें तो इस बातका सबूत है ही कि सूचनाएँ मुझसे प्राप्त नहीं हुई; इसके अतिरिक्त मैं यह कहना चाहूँगा कि मैंने सायंकाल ६ बजेतक, अर्थात् माननीय पंडित मालवीयजीके आनेतक बांकीपुरमें भेंटके सम्बन्धमें किसीको कुछ नहीं बताया था और फिर मैंने मालवीयजी और चार अन्य मित्रोंसे जो बातचीत[१] की उसमें उक्त समाचारमें उल्लिखित बहुत सारी बातोंका जिक्र तक नहीं किया था।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया) से; सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १२७, पृष्ठ २१६ से भी।

 

३४४. पत्र: एस्थर फैरिंगको

मोतीहारी
जून ११, १९१७

प्रिय एस्थर,

मैं यहाँ एक दिनके लिए आया हूँ। मुझे तुम्हारी पुस्तिका[२] स्टेशन जाते-जाते मिली। इस पुस्तिकासे मुझे उन अत्यन्त आनन्दप्रद क्षणोंका स्मरण हो आया जो मैंने वर्षों पूर्व दक्षिण आफ्रिकामें बिताये थे। मैंने यह पुस्तिका कुछ अत्यन्त प्रिय ईसाई मित्रोंके साथ रहते हुए पढ़ी थी। मैंने इसे आज फिरसे पढ़ा और यदि ऐसी पवित्र पुस्तिकाके सम्बन्धमें ऐसा कुछ लिखा जा सकता हो तो मैं कहूँगा कि मुझे यह पहलेसे भी अधिक पसन्द आई। मेरी दृष्टिमें सत्य और प्रेम एकार्थवाची शब्द हैं, अर्थात् जिसे हम सत्य कहते हैं उसीको प्रेम भी कह सकते हैं। शायद तुम नहीं जानतीं कि निष्क्रिय प्रतिरोधका गुजराती नाम सत्यबल है। मैंने इसे सत्यबल, प्रेमबल या आत्मबल कहकर कई तरहसे स्पष्ट किया है। किन्तु सच तो यह है कि शब्दोंमें कुछ रखा नहीं है। करने योग्य बात तो यह है कि हमें सर्वत्र जो घृणा दिखाई देती है उसके बीच हम प्रेमपूर्ण जीवन बितायें। और जबतक इसकी अमोघ शक्तिमें हमारी अटूट श्रद्धा न हो तबतक हम ऐसा जीवन नहीं बिता सकते। दो-तीन शताब्दी पूर्व मीराबाई नामक एक महान् रानी हुई है। उन्होंने अपने पति और समस्त वैभवका त्याग करके परमप्रेमका जीवन बिताया। अन्तमें उनके पति उनके भक्त बन गये। हम अक्सर उनके रचे हुए कुछ सुन्दर भजन आश्रममें गाते हैं। जब तुम आश्रममें आओगी तब इन गीतोंको सुनोगी; और किसी दिन गाओगी भी।

 
  1. १. जून ७ की बातचीत।
  2. २. कोरिंथियन्स, अध्याय १३।