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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए समय माँगा और बाँकीपुरमें उनसे भेंट करनेके बाद तुरन्त मुझे अपना निर्णय सूचित करनेका वचन दिया।

श्री गांधीने स्वीकार किया कि समितिके सम्मुख निम्नलिखित सन्दर्भ-पद (टर्म्स ऑफ रेफरेन्स) प्रस्तुत करना उपयुक्त होगा:

चम्पारन जिलेके जमींदारों तथा काश्तकारोंके सम्बन्धकी और नीलकी खेती तथा उसके निर्माणसे उत्पन्न सभी झगड़ोंकी जाँच करना। समिति पहलेसे ही उपलब्ध सामग्रीकी परीक्षा करे और परीक्षाको सर्वांगपूर्ण बनाने के लिए स्थानीय और अस्थानीय रूपसे आगे जो भी जाँच कराना वांछित लगे, करवाये। वह अपने निष्कर्षकी रिपोर्ट, यदि सम्भव हो तो १५ अक्तूबर तक, सरकारके सामने प्रस्तुत कर दे। जिन बुराइयों और शिकायतोंका उसे पता चले, उन्हें दूर करने के उपाय भी वह रिपोर्टमें बताये।

श्री गांधीने यह पूछा कि क्या यह निश्चित माना जा सकता है कि उपर्युक्त सन्दर्भ-पदमें मेरे १३ मईके नोटमें[१] उल्लिखित सभी मुद्दे आ जाते हैं, जिनमें शरहबेशी सट्टोंका प्रश्न भी शामिल है; हालाँकि उनसे सम्बन्धित एक मामला उच्च न्यायालयके विचारार्थ प्रस्तुत है। मैंने कहा कि हाँ, उसमें सभी मुद्दे आ जाते हैं।

फिर श्री गांधीने कहा कि मेरा खयाल है, “पहलेसे ही उपलब्ध सामग्री” शब्द-समुच्चयमें वे सब गवाहियाँ भी आ जायेंगी जिन्हें मैं पेश करना चाहूँगा, मैंने इसका उत्तर भी “हाँ” में दिया।

श्री गांधीने कहा कि मेरे विचारसे तो समितिकी कार्रवाई अनौपचारिक और सरसरे ढंगकी होनी चाहिए। मैंने कहा कि मुझे तो यह बात मान लेने लायक लगती है, किन्तु मेरा खयाल है कि इसे समितिके सदस्योंकी मर्जीपर छोड़ दिया जाये।

श्री गांधी अपनी ओरसे वचन देते हैं कि वे तुरन्त अपना जाँचका काम बन्द कर देंगे। तथा अब से वे एक भी व्यक्तिका वक्तव्य नहीं लेंगे, और न खुद गाँवोंमें जायेंगे, न अपने सहायकोंको ही जाने देंगे। श्री गांधी काश्तकारोंको ऐसा महसूस करने देना नहीं चाहते कि
‘क’ उन्होंने ऐन मौकेपर उन्हें छोड़ दिया है, और इसी कारण वे समितिको बैठक प्रारम्भ होने तक उस जिलेको बिलकुल छोड़ना नहीं चाहते। किन्तु, वे यह वचन देते हैं कि वे बेतिया और मोतीहारीसे बाहर नहीं जायेंगे। वे कुछ समयके लिए इन स्थानों में जायेंगे और फिर अहमदाबादका एक चक्कर लगायेंगे।

श्री गांधीने कहा कि गैर-कानूनी कामोंको, जैसे अबवाब लगाना और बेगारमें श्रम कराना, बन्द करनेके लिए तुरन्त हुक्म जारी किये जायें। मैंने कहा कि हम तबतक ऐसा नहीं कर सकते जबतक कि इसके साथ-ही-साथ गोरे जमींदारोंके अनुरोधके अनुसार यह

 
  1. १. देखिए “प्रतिवेदन: चम्पारनके किसानोंकी हालतके बारेमें”, १३-५-१९१७।