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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पूर्ण प्रभुत्व हो जायेगा तब वे खुद सब जगह ऐसी शिक्षण पद्धतिका प्रसार करने के लिए संघर्ष कर सकेंगे। यदि मैं मुक्त रहा और जिन्दा रहा तो उसमें भी भाग लूँगा। यदि नहीं, तो यह संघर्ष तुम सबको रास्ता दिखायेगा।

‘हे कुरुनन्दन! योगवादीकी निश्चयात्मक बुद्धि एकरूप होती है, परन्तु अनिश्चयवालोंकी बुद्धियाँ अनेक शाखाओंवाली और अनन्त होती हैं।”[१]

इसमें सब कुछ आ जाता है।

एक बार कृतसंकल्प हो जानेके बाद जब यह धारणा बन जायेगी कि चाहेजो हो, अपने मार्गपर दृढ़ रहना है, तो सब-कुछ अपने-आप बनता चला जायेगा। मैं कैसे लोगोंकी व्यथा-कथा सुन और लिख पाता हूँ, यह कोई खास बात नहीं है। इसमें मामाके पत्रका उत्तर भी आ जाता है। उन्हें सारा पत्र पढ़ा देना। नारणदासको तुमने जो पत्र लिखा था वह अथवा उसने तुम्हें जो पत्र भेजा था वह, तुम मुझे भेजना भूल गये जान पड़ते हो। बुनाईके अलावा तुम्हें जो अन्य मजदूर रखना उचित जान पड़े, रख लेना। बाजार के अनुसार हम दाम ले सकते हैं। मकानके नक्शे के विषयमें तुमने जो लिखा है वह उचित जान पड़ता है। यदि रहनेके लिए जाओ तो उसमें तुरन्त बाड़ लगा देना। काहेकी बाड़ लगानी है, इसपर विचार कर लेना। मैं अपना नक्शा पहले ही दे चुका हूँ । घरके आसपास चौड़ा चबूतरा बनानेका ध्यान रखना। शिक्षकोंके मकान सामनेकी जगहमें हों, यह ठीक है। वहीं लालजी आदिके लिए भी ... आदरणीय खुशालभाईके लिए मैं नहीं कह सकता। उसके बारेमें तुम्हीं विचार कर लेना। मेरे पत्रके[२] उत्तरमें वह क्या निर्णय करते हैं यह भी देखना बाकी है। मुझे लगता है, मकानपर बीस हजार रुपया खर्च करना पड़ेगा और हम उतना खर्च कर पायेंगे। डॉक्टर साहबके पाससे प्रतिवर्ष दो हजार रुपये मिलेंगे। यह रकम अभी उन्होंने हमारे पास जमा नहीं कराई है लेकिन मेरा खयाल है वे जल्दी ही जमा करा देंगे। यदि किसी चीजकी जरूरत हो तो उन्हें बताना। जमीनको मैं अलग मानता हूँ। मकान पक्की ईंटोंसे बनानेकी आवश्यकता महसूस करो तो बनवाना। वहाँ एक्जीक्यूटिव इंजीनियर श्री तैयबजी हैं। वे मदद कर सकते हैं। जब वे मुझे जेल दिखान ले गये थ तब पूंजाभाई मेरे साथ थे।

वेतन आश्रमकी पूँजीमें से दिया जाये, यह ठीक है। यदि पाठशालाके खातेम कोई व्यक्ति रुपया भेजे तो उसका क्या किया जाये, इसकी जाँच भी कर लेनी है। शिक्षकोंके मकान भी आश्रमके रुपयोंमें से बनाये जायेंगे। यदि वे दे सकते हों तो उन्हें जमीन तथा और चीजोंपर जो लागत आयेगी, उसपर छः प्रतिशतके हिसाबसे अथवा वे जो उचित समझें उस हिसाबसे, किराया देना चाहिए। इससे तुम्हारे सब प्रश्नोंका उत्तर मिल जाता है।

बापूके आशीर्वाद

 
  1. १. व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।
    बहुशाखाह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्॥ भगवद्गीता, २-४१।
  2. २. उपलब्ध नहीं है।