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३३६. पत्र: मगनलाल गांधीको

बेतिया
ज्येष्ठ सुदी ११, संवत् १९७३
[जून १, १९१७]

चि० मगनलाल,

जिन किशोरलालके सम्बन्धमें भाई चन्दूलालने लिखा था, वे यहाँ आ गये हैं। लेकिन उनका शरीर स्वस्थ नहीं है, इसलिए उन्हें वापस भेज रहा हूँ। वे बहुत भले व्यक्ति हैं। [मैंने] उन्हें पाठशालामें शामिल होनेके लिए कहा है। मुझे विश्वास है कि वे शामिल कर लिये जायेंगे।

आज सवेरे मैंने जो पत्र भेजा उसमें अपने अन्तिम विचार पूरी तरह प्रकट नहीं कर सका। भाई फूलचन्द तथा नरहरिके नाम रहनेवालोंकी सूचीमें इसलिए नहीं लिखे कि वे यदि यहाँके जेल जीवनका अनुभव करना चाहेंगे तो वह अन्त-अन्तमें भी हो सकेगा। भाई सांकलचन्दके सहारे हीपाठशाला आरम्भ की गई है। वे चाहें भी तो यहाँ नहीं आ सकते। फिलहाल काकाके बिना पाठशालाकी कल्पना नहीं कर सकता। भाई सांकलचन्द अकेले उसे नहीं चला सकेंगे। इसलिए काकाको भी वहीं रहना चाहिए। काकाके लिए यहाँ बहुत सीखनेको नहीं रहा है। मैं उन्हें पहुँचा हुआ व्यक्ति मानता हूँ। वे बहुत परिश्रम कर सकते हैं। उनके लिए सबकी सेवा करनेका काम सीखना अभी बाकी है। यह काकाके लिए उपयुक्त अवसर है। मामा आधा समय स्कूलमें और आधा समय बुनाईमें अथवा पूरा समय बुनाईके काममें व्यतीत कर सकते हैं। वे भी काकाके समान ही हैं। अन्तिम समय तक कष्ट सहना और समय आनेपर जेल जाना, यही सीखना है। इस पाठशालामें मामा उत्तीर्ण हुए हैं। छोटा-लालके बिना तुम बुनाई-घर कैसे चला सकोगे? और फिर, जेल जाना छोटालालके लिए आसक्तिका विषय है। उसके लेखे जेल कोई कष्टका स्थान नहीं है। उसे तो यदि कष्ट कहीं हैं तो वहीं है, तो भी वह उन्हें उठाता है और उठाता रहेगा। सन्तोक यदि वहाँ रहे तो लड़कियोंकी देखभाल हो सकती है तथा व्रजलालको रसोईके कामसे छुट्टी मिल सकती है। खुशालभाई वहाँ आ गये हों तो छगनलालको छोड़ा जा सकता है। और पूंजाभाई जैसा हिसाब रखते हैं वैसा रखें। उनके पाससे कौन हिसाब लेनेवाला है? मुझे यही व्यवस्था उचित जान पड़ती है। शिक्षकोंमें से एक भी व्यक्ति इस कार्यमें भाग लेनेके लिए बँधा हुआ नहीं है। मैं उनसे वैसी अपेक्षा भी नहीं रखता। मैंने इतना ही कहा है कि यदि वे चाहें तो भी केवल दो को छोड़ा जा सकता है। लेकिन फिलहाल तो देवदासके सिवाय किसी और व्यक्तिके आनेकी आवश्यकता नहीं दिखाई देती। तुम, मामा और छोटालाल जब करघेके ऊपर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लोगे तब, मेरी सहायताके बिना अकेले ही करघा चलानेवाले व्यक्तियोंके उद्धारके लिए लड़ लोगे। जब भाई सांकलचन्द तथा अन्य शिक्षकोंका राष्ट्रीय पाठशालापर