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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

आरोग्यके लिए प्रत्येक वर्गको सप्ताह में एक-एक घंटा दें तो काम चल जायेगा। शिक्षक बराबर यह ध्यान रखे कि जो-कुछ सिखाया गया है, उसपर उस सप्ताहमें अमल किया गया है या नहीं। विद्यार्थियोंके लिए इसका दूसरा घंटा नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं कि सप्ताहमें क्या पढ़ाया है, वह यही भूल जाये। शालामें जिस लड़केके नाखून बढ़े हुए हों और उनमें मैल हो, उससे शिक्षक गणितके घंटेमें भी पूछ सकता है कि उसके नाखूनों में मैल क्यों है और उसे इस सम्बन्धमें क्या बात सिखाई गई थी।

प्रोफेसर (इसके लिए गुजराती शब्द क्या होगा? ऐसा ही रखना पड़ेगा?) कृपलानी आयेंगे अवश्य। वे पहले तो आजमाकर देखेंगे। यदि यह कार्य उनकी शक्तिसे बाहर न होगा तो इसमें सम्मिलित हो जायेंगे। फिलहाल तो वे यहाँसे नहीं निकल सकते।

मैं यह पत्र कुछ लम्बा लिख गया हूँ――लगभग अनर्गल-सा ही। लेकिन बात यह मैं थी कि अपना आशय पूरी तरह समझा देनेकी मेरी इच्छा बड़ी प्रबल हो उठी थी।

मोहनदासके वन्देमातरम्

फिर भी कुछ बात रह ही गई।

जबतक संगीतका शिक्षक न मिले, तबतक तो उसे छोड़े ही रहना पड़ेगा। इस विषयको बहुत महत्त्व नहीं दिया जाता, इसलिए यह केवल अभिनेताओं और भक्तजनों तक ही सीमित रह गया है। अभिनेताओंको नियुक्त करनेसे पूर्व हमें सोचना होगा और कोई भक्त हमें मिलेगा नहीं। गान्धर्व महाविद्यालयको लिखकर देखिए। क्या विज्ञान-शिक्षण सम्बन्धी आवश्यक सामग्रीकी सूची भेजेंगे? मैं सब-कुछ स्थायी हो जानेसे पूर्व अधिक मूल्यकी वस्तुएँ खरीदते डरता हूँ। जिन पुस्तकोंकी कमी हो, उनकी भी सूची भेज दें तो ठीक हो।

मेरी सारी बातोंको केवल विचारार्थ ही समझें। उनको अमलमें लाना न लाना तो आप सबकी इच्छापर है।

आपका पत्र और पाठ्यक्रम वापस भेज रहा हूँ।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र ( एस० एन० ६३६० ) की फोटो-नकलसे।