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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

पीछे चपरासी लगा दिये जाते हैं। इस तरीकेको अपनानेकी बात प्रार्थना पत्रमें नहीं कही गई है। दूसरा तरीका है कि खलिहानोंमें जमा फसल जब्त कर ली जाती है। इसको अपनानेकी बात भी उसमें नहीं कही गई है। कभी-कभी नाइयों और धोबियोंको काम करनेसे मना कर दिया जाता है; प्रार्थनापत्रमें इसकी आशंका प्रकट की गई है। अभीतक यह तरीका उनपर इस्तेमाल नहीं किया गया है। और सबसे ज्यादा कारगर तरीका है रैयतके मवेशियोंको या तो गैर-सरकारी कांजी हाउसमें या यदि डी० बी० कांजी-हाउस भु-स्वामीको पट्टेपर दे दिया हो तो उसमें बन्द करा दिया जाता है।

वैसे प्रतिवेदन अपने-आपमें रैयतके खिलाफ ही है। मेरी राय यह है कि प्रतिवेदनमें रैयतके साथ न्याय नहीं किया गया है। मैं अपनी यह राय परिस्थितिका भली प्रकार अध्ययन करने के बाद पूरी विनम्रताके साथ लिख रहा हूँ। लोग प्रायः इस बातको भुला देते हैं कि मालिकोंको हर मामलेमें ताकत का इस्तेमाल करनेकी जरूरत नहीं पड़ती। उनके पास ताकत है और कहीं थोड़ीसी भी आजाद-ख्याली दिखाई पड़नेपर वे उसका इस्तेमाल कर सकते हैं――यह तथ्य अपने-आपमें ही लोगोंको अवज्ञा करनेसे रोकनेके लिए पर्याप्त है। मेरा सादर निवेदन है कि मालिक इतने लम्बे अर्सेसे मन-मानी करते आ रहे हैं कि रैयतमें अब कुछ भी कर सकनेकी ताब नहीं रह गई है। सरकारको रैयतकी पूरी-पूरी देखभाल करनी चाहिए और उसकी बातोंपर ध्यान देना चाहिए। लेकिन सरकार तबतक ऐसा नहीं करेगी जबतक कि वह मालिकोंके मुकाबिले रैयतकी बातोंपर (इसमें सन्देह नहीं कि उनमें अतिशयोक्ति होगी ही) अधिक विश्वास करनेके लिए तैयार हो।

पत्र काफी लम्बा हो गया है, इसके लिए मैं क्षमा-प्रार्थी हूँ। यदि इसमें आवश्यकतासे अधिक स्पष्टवादिता हो, तो उसका कारण मेरा यह बड़ा कार्य ही है जिसे लेकर मैं चल रहा हूँ। वह इतना बड़ा है कि उसमें फूहड़पनसे कोई कतर-व्यौंत नहीं की जा सकती। आशा है कि ऐसे समयमें जब सरकार और भारतकी जनताके सामने एक इतना बड़ा संकट है; सरकार मुझसे यह अपेक्षा नहीं करेगी कि मैं अपनी भावनाओंको व्यक्त करनेमें दुराव-छिपाव करूँ।

मैं लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयका बड़ा कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने मुझसे स्वयं ही बात करनेका निश्चय किया है। मैं तो रैयतकी ओरसे यही मनाऊँगा कि मैं ऐसा कुछ भी न करूँ या कहूँ जिससे उसके इस जबर्दस्त कार्यपर कोई बुरा प्रभाव पड़े, और लेफ्टिनेंट-गवर्नर महोदयकी उपस्थितिमें मुझे अपनी बात कहनेके लिए ऐसे उपयुक्त शब्द सूझें कि मैं उनको रैयतकी दयनीय दशा उसी रूपमें समझा सकूं जिस रूपमें में उसे समझता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १०९, पृष्ठ १७४-७।