भी मैं रैयतके कथनपर अविश्वास करने और यह माननेके लिए तैयार हूँ कि आग अपने-आप किसी दुर्घटनाके फलस्वरूप लगी होगी। पर मैं यह भी बतला दूँ कि ढोक-रहाके अग्निकांडमें केवल छानी और छप्पर ही जला था । साथमें, में यह भी कहता हूँ कि यदि यह भी मान लिया जाये कि मेरी उपस्थितिके कारण तैशमें आकर रैयतके किसी सिर-फिरे आदमीने ही जानबूझकर आग लगाई थी, तो भी मुझे यहाँसे हटानेका तबतक कोई औचित्य नहीं जबतक सरकारको निश्चित तौरपर यह मालूम न हो जाये कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपसे अग्निकांडमें मेरा हाथ था। और अन्तमें में कहूँगा कि मेरे आनेसे पहले भी कोठियोंमें कई बार आग लगती रही है और, जैसा आयुक्तने स्वीकार किया है, मेरे बिहारमें प्रवेश करनेसे बहुत पहलेसे चम्पारनमें उत्तेजना फैली हुई थी। मैं बड़े आदरके साथ सरकारको चेतावनी देना चाहता हूँ कि यदि वह मुझे रैयतके बीचसे हटायेगी तो बुरी तरह गलतफहमीकी शिकार बनेगी। मैं सिवाय इसके और कुछ नहीं चाहता कि मालिकों और रैयतके बीच परस्पर शान्ति स्थापित करूँ, जिससे कि रैयतको भी उतनी स्वतन्त्रता और प्रतिष्ठा मिल जाये जितनी कि मनुष्यमात्रको मिलनी ही चाहिए।
मैं चाहता हूँ कि सरकार मालिकों द्वारा फैलाई हुई इस भ्रान्तिको अपने दिमागसे निकाल दे कि कुछ शरारती लोगोंकी स्वार्थ-वश की गई हरकतोंके कारण वर्तमान उत्तेजना फैली है। मालिक इतने शक्तिशाली हैं कि उनको कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता, चाहे वह कितना ही बड़ा शरारती क्यों न हो। रैयतका कहना है कि उसने कोई ऐसा काम नहीं किया कि उन गांवों में पुलिस तैनात की जाती; पुलिस तो मालिकोंकी दमनकारी नीतिके तहत तैनात की गई थी। स्वीकार किया गया है कि साठीमें रैयतकी अपेक्षा मैनेजरका ही दोष अधिक था, फिर भी रैयतको उसकी कीमत धन और जनसे चुकानी पड़ी। अब वहाँ पूर्णत: शान्ति है, इसलिए कि मौजूदा मैनेजर अपना काम जानता है। मेरे पास चम्पारन-भरकी रैयतके ७,००० से ज्यादा लोगोंके बयान मौजूद हैं। हालाँकि खुद अकेले जाकर उनके बयान दर्ज करना मेरे लिए असम्भव था फिर भी मैंने वे सब देख लिये हैं। अब यह विश्वास करना बड़ा मुश्किल है कि उन सभी लोगोंने कुछ शरारतियोंके बहकावेमें आकर झूठ-मूठ बयान दिये हैं।
मोतीहारी प्रतिष्ठान (कोठी) के मैनेजरको लिखे गये अपने पत्रोंकी[१] प्रतियाँ मैं संलग्न कर रहा हूँ। अपने पहले पत्रका मुझे कोई उत्तर नहीं मिला था। पूरे प्रसंगका शायद कोई दूसरा पहलू भी हो, परन्तु जिन घटनाओंका वर्णन किया गया है वे बतलाती हैं कि रैयतके लोग कितना जोखिम उठाकर मुझसे मिलने आये थे। मैं जो उद्धरण दे रहा हूँ उससे आपको पता चलेगा कि रैयतको अपनी मर्जीके मुताबिक झुकानेके लिए मालिकों द्वारा अपनाये गये तरीकोंके बारेमें बेतिया सब-डिवीजनके उस समयके सब-डिवीजनल अफसर, श्री जॉन्स्टनने[२]१९१४में क्या कहा था:
अवज्ञा करनेवाले किसानोंको अदायगी करनेपर विवश करनेके लिए इस सब-डिवीजनमें चार तरीके अपनाये जाते हैं। आम तरीका तो यह है कि उसके