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३२४. पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको

मोतीहारी
मई २६, १९१७

प्रिय श्री हेकॉक,

आपकी कलकी तारीखकी टिप्पणीके लिए धन्यवाद। वह मुझे आज सुबह ६-४५ पर मिली।

मेरी टिप्पणी लेकर जो सन्देशवाहक गया था, उसने मुझे बताया कि आप कहीं अन्यत्र गये हुए थे; उसने बताया कि आप दोपहरको लगभग २ बजे तक वापस आ सकते हैं। शामके ६ बजे तक इन्तजार करनेके बाद मैंने छतौनी जानेका निर्णय किया; मैं वहाँ एकाएक पहुँचना चाहता था। मैंने इसलिए जो लोग मेरे पास आये थे, उन्हें अपने पहले वहाँ पहुँचनेसे रोक दिया था।[१]

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

 

३२५. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बेतिया
मई २६, १९१७

प्रिय एस्थर,

गांधीजीके स्वाक्षरों मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया) से; सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १०१ (ए), पृष्ठ १६९ से भी।

तुम्हारा पत्र इतना अच्छा है कि मैं इसे पोलक-दम्पतिके पास पढ़नेके लिए भेजनेकी धृष्टता कर रहा हूँ; वे इसे पढ़कर अहमदाबाद भेज देंगे। मुझे आशा है तुम इसका बुरा नहीं मानोगी।

जो लोग नीलकी खेती नहीं करते, वे भी गैरकानूनी लाभ उठाना चाहते हैं। इसलिए वे रैयतपर दबाव डालते हैं कि वे उनकी जमीनपर उनके लिए मेहनत करें, सो भी या तो बहुत कम मजदूरीपर या कभी-कभी बिना किसी मजदूरीके वे उन्हें लगानके अतिरिक्त [अबवाब आदि] देनेपर भी मजबूर करते हैं। निःसन्देह, उनकी दशा गुलामोंसे किसी भी प्रकार बेहतर नहीं है। जो और कागजात मैंने तुम्हारे पास भेजे हैं, वे इस प्रश्नपर और अधिक प्रकाश डालेंगे। मैं यह जरूर कहूँगा कि सिर्फ बागान-

  1. १. यहाँ पत्र कटा-फटा है।