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३१७. पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको

बेतिया
मई २२, १९१७

प्रिय श्री हेकॉक,

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

इसके साथ में ढोकरहाकी अग्नि दुर्घटनाके बारेमें एक और वक्तव्य भेज रहा हूँ। इसके बारेमें मुझे कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं है।

(संलग्न वक्तव्य)

बेतिया
मई २१, १९१७

आज सुबह करीब १० बजे ढोकरहासे कुछ लोग आये और उन्होंने श्री गांधीको बताया कि कुछ अफसर वहाँ गये थे वे उनसे घटनाके विषयमें पूछताछ कर रहे थे कि तभी एक आदमीने कहा कि उसने सुना था कि आग लगने से पहले कारखानेके आदमियोंने कचहरीके दरवाजे निकाल लिये थे। मैंने सुझाव दिया कि उस स्थानपर जाकर जाँच करनेसे उपयोगी सूचना प्राप्त हो सकती है। श्री गांधीने यह सुझाव स्वीकार किया और मुझसे खुद ढोकरहा जानेको कहा। तदनुसार मैं तुरन्त घटनास्थलके लिए रवाना हो गया।

मैं कोई ११॥ बजे ढोकरहा पहुँचा। कोठीमें मुझे सिर्फ एक गाड़ीवान मिला। उसने कहा कि जिस समय आग लगी थी, वह वहाँ उपस्थित नहीं था, लेकिन चौकीदार उपस्थित था। मैंने उससे चौकीदारको बुला लानेको कहा, और इस बीच मैंने कचहरीका निरीक्षण शुरू किया।

कचहरी कारखानेके मैनेजरके रिहायशी बॅगलेके अहातेमें स्थित है। यह अनुमानतः २१ फुट लम्बा और १५ फुट चौड़ा एक कमरा-मात्र है।...

उसकी सारी छत नीचे गिर पड़ी है। दीवारें ईंटकी हैं जिनपर मिट्टीका पलस्तर है। दीवारोंपर अन्दर और बाहरकी सफेदीपर कोई असर नहीं पड़ा है। केवल चार या पाँच जगहोंपर दीवारोंके ऊपरी हिस्से काले दिखाई दिये। दीवारके ऊपरी हिस्सेको देखकर लगता है कि आगको फैलनेसे रोकने के लिए छतकी धन्नियाँ खींचकर निकाल दी गई थीं। छतपर फूसकी छावन थी जिसपर देशी खपरैल डाल दी गई थी। कमरेके अन्दर और बाहर मलबेके ढेरमें जगह-जगह जली हुई धन्नियोंको देखा जा सकता था। आंशिक रूपसे जले कागजोंका एक ढेर भी मिला; मैंने उनकी जाँच की।