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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मजदूरोंको मारा-पीटा। यह जमींदार एक छोटी-सी जमींदारीमें किसी कारखानेका हिस्सेदार है। उसने अपने हिस्सेकी जमींदारी छोड़ने से इनकार कर दिया है और कहा जाता है। कि मण्डलीके आगमनकी सूचना उसीने रैयतको करवाई थी। उक्त कथित मारपीट के आरोपकी सचाई पूरी तरह साबित करनेवाले बहुतसे बयान प्राप्त हुए हैं। ऐसी शिकायतें रैयतके व्यक्तिगत सदस्योंकी ओरसे बराबर आती रहती हैं कि श्री गांधीके पास जानेके कारण उन्हें तरह-तरहके दण्ड देनेकी धमकी दी जाती है और वे काफी खतरा उठाकर उनके पास आते हैं।

यह कहनेकी जरूरत नहीं है कि कार्यकर्ताओंको अपना काम करनेसे कोई चीज नहीं रोक सकती। उसे छोड़नेके मतलब होंगे रैयतके साथ और घोर अन्याय करना। कार्य-कर्त्ताओंकी एक ऐसी टोलीकी उपस्थिति-मात्रसे, जिसने उनके दुःखोंकी सीधी-सादी और करुण कथा बराबर सुनी है, और इस जानकारीसे आवश्यकता पड़नेपर उनकी सहायता के लिए दौड़ी आयेगी, रैयतका उत्साह बढ़ा है और उनमें आशा और साहसका संचार हुआ है। जबतक रैयत मुक्त होकर साँस न लेने लगे उस समय तक यदि भयवश या अन्य किसी कारणसे ये कार्यकर्त्ता काम छोड़कर जाते हैं तो वे इस महान् उद्देश्य और अपने देशके लिए कलंकरूप होंगे।

ऊपर बताई गई घटनाओंके सिलसिलेमें श्री गांधीने चम्पारनके जिला मजिस्ट्रेटको एक पत्र[१] भेजा है। उस पत्र तथा अन्य कागजातोंकी प्रतियाँ इस टिप्पणीके साथ भेजी जायेंगी, या उन्हें जल्दी ही अलगसे भेजा जायेगा। पहलेसे बरती गई सावधानियों के कारण सम्भव है बागान-मालिक डराने-धमकानेकी अपनी योजना स्थगित रखें। किन्तु स्थिति किसी भी समय बिगड़ सकती है और भयंकर अराजकता फैलनेका डर है। अब यह बात समझ ही ली गई होगी कि यदि स्थिति बिगड़ी तो उसकी जिम्मेदारी किसी भी हालतमें मण्डलीके सदस्योंपर नहीं होगी; और जनताको यह जान लेना चाहिए कि मण्डली अपना कार्य जारी रखेगी।

ऊपरकी बातसे स्वयंसेवकोंको तैयार रखनेकी आवश्यकता स्पष्ट होती है, ताकि वे एक क्षणकी सूचनापर रवाना हो सकें। ये स्वयंसेवक प्रौढ़, जिम्मेदार, शान्त प्रकृतिके और शिक्षित होने चाहिए। उनमें कष्ट सहनकी क्षमता या तैयारी होनी चाहिए; उन्हें संघर्षको अन्त तक चलानेके लिए तैयार होकर आना चाहिए; उनको हिन्दीका कामचलाऊ ज्ञान अवश्य होना चाहिए (इसलिए केवल तमिल लोग ही, सिवा उनके जिन्होंने थोड़ी- बहुत हिन्दी सीख ली है, स्वयंसेवक नहीं हो सकेंगे); उन्हें गाँवों में जाने और रैयतके वीच रहनेको तैयार रहना होगा। ऐसा अनुमान है कि उन्हें कमसे-कम ६ महीने तक काम करना होगा।

मो० क० गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६३५२) से।

सौजन्य: गांधी स्मारक निधि

 
  1. १. देखिए पिछला शीर्षक।