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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सौंपकर घर नहीं बैठ सकते। कमीशनकी स्थापनाकी बात तभी स्वीकार की जा सकती है जब इस समय जो अन्याय हो रहे हैं उन्हें तत्काल दूर कर दिया जाये; और जो व्यक्ति कमीशनके सदस्य नियुक्त हों उनमें लोंगोंको विश्वास हो, तथा मण्डलीको भी अपना काम जारी रखने दिया जाये। यदि कमीशन नियुक्त किया जायेगा तो मण्डली अपने कामका क्षेत्र बदल देगी, अर्थात् तब वह जाँच-कार्य छोड़कर उसके बदले गाँवोंमें जाकर कमीशनके सामने पेश करनेके लिए प्रमाण और गाँववालोंके बयान इकट्ठे करेगी। कमीशन स्वीकार्य हो, इससे पहले जो शिकायतें दूर हो जानी चाहिए, वे ये हैं: (१) अबवाव या बागान मालिकों द्वारा वसूल की जानेवाली गैर-कानूनी चुंगीको नाममात्रके लिए नहीं, वास्तवमें खत्म किया जाये; (२) नीलकी खेती न करनेपर क्षतिपूर्तिके रूपमें एक मुश्त रकम या शरहवेशी रूपी हरजाना समाप्त किया जाये; (३) तिन-कठिया किसी भी रूप और ढंगसे वसूल न की जाये; (४) रैयतपर जुर्माना लगानेकी प्रणाली समाप्त की जाये; (५) मजदूरी करानेके लिए या बागान-मालिकोंकी मर्जी पूरी कराने के लिए मारपीटका तरीका समाप्त किया जाये।

इस प्रकार कमीशन जिन बातोंकी जाँच करेगा वे ये होंगी: (१) बागान- मालिकोंके भूमिपर पट्टकी शर्तें क्या हैं; (२) बागान-मालिकों द्वारा रैयतसे अबतक वसूल की गई गैर-कानूनी चुंगीको वापस दिलानेका औचित्य और सम्भावनाएँ क्या हैं; (३) भू-स्वामियों द्वारा किन परिस्थितियों में मजदूर प्राप्त किये गये हैं; (४) मजदूरोंको मिलनेवाला मेहनताना पर्याप्त है अथवा नहीं; (५) आम जनताकी घोर गरीबी और नितान्त असह्य अवस्थाके कारण क्या हैं।

उक्त मुद्दे यहाँ इसलिए दिये गये हैं कि यह जाना जा सके कि जिस ढंगका कमीशन हमें स्वीकार हो सकता है, बागान-मालिकोंका विचार उससे बिलकुल भिन्न ढंगके कमीशनकी स्थापना है।

जहाँतक जनता और समाचारपत्रोंके लिए अपनी राय जाहिर करनेका सवाल है सबसे अच्छा तो यह होगा कि वे सबसे पहले मानी हुई शिकायतोंको दूर करनेका आग्रह करें और फिर यदि जरूरी जान पड़े तो वे एक कमीशन नियुक्त किये जानेकी बात स्वीकार कर लें; लेकिन यह बात तो निश्चित ही मानी जाये कि किसी भी स्थिति में कार्यकर्त्तागण अपना काम जारी रखेंगे।

बागान-मालिकों द्वारा अपनाया गया दूसरा तरीका यह है कि वे ऐसे उपद्रव करायें या उनका लाभ उठायें जिनसे सरकार मण्डलीके प्रति आशंकित हो उठे; इसके सिवा वे मण्डली और उसके सहायकोंको डराते-धमकाते भी रहें।

आग लगानेकी घटनाका[१] ऐसा उपयोग पहले ही किया जा चुका है। आज धारणा यही है कि उससे जो क्षति हुई है वह बहुत ही थोड़ी है, और यह काम खुद बागान मालिकोंका ही कराया हुआ है। लेकिन इस धारणाको गलत भी माना जा सकता है। आगकी इस घटनाको चाहे मात्र संयोग मानें, चाहे किसी दुष्टकी कार्रवाई, लेकिन मण्डलीसे उसका कदापि कोई सम्बन्ध नहीं है। श्री गांधी द्वारा पूछे गये प्रश्नके[२] उत्तरमें

  1. १. यह आग ओलावा कारखाने में लगी थी।
  2. २. देखिए “पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको”, १४-५-१९१७।