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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चलानेके लिए मुझे भीख माँगनेकी आवश्यकता नहीं हुई। लेकिन यह तो लम्बी कहानी है जिसकी चर्चा में यहाँ नहीं कर सकता।

यहाँका कार्य यथावत् चल रहा है।

जब कुमारी पीटरसनको पत्र लिखो तो उसे मेरी याद अवश्य दिला देना और कहना कि उसने जो लम्बा पत्र मुझे लिखनेका वादा किया था मैं उसकी अभीतक प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड

३१३. पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको

बेतिया,
मई २०, १९१७

प्रिय श्री हेकॉक,

अभीतक मैंने आपको जानबूझकर ऐसे वक्तव्योंकी सूचना नहीं दी थी जिनमें कहा गया है कि रैयतको मेरे पास आनेसे रोका जाता है, और जो लोग आये हैं उन्हें कोठीके अमला लोग तरह-तरहसे सताते हैं, और कभी-कभी तो स्वयं मैनेजर भी उन्हें सताते हैं। ऐसी शिकायतें मेरे पास लगातार आती रहती हैं। मैंने इनमें से सभी बयानोंको पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना है, फिर भी कुछ बयानोंको दर्ज किया है। लेकिन बेलवा और ढोकरहाकी कम्पनियोंकी कारगुजारियोंके बारेमें मैंने जो-कुछ सुना है यदि वह सच है तो उनका एक परिणाम तो निश्चित है; अर्थात् उस सद्भावपूर्ण भावनाका अन्त, जिसमें अभीतक जाँचका काम चल रहा था। मैं इस मंत्रीकी भावनाको बनाये रखने और उसे और बढ़ानेके लिए अत्यन्त उत्सुक हूँ। अपनी सामर्थ्य-भर में मण्डलीका कार्य इस प्रकार चला रहा हूँ कि जब उसका कार्य पूरा हो उस समय पारस्परिक सद्भावनाके अलावा कोई कटुभाव न रह जाये। बेलवा और ढोकरहा कम्पनियोंके सम्बन्धमें लिखाये गये बयान[१] मैं आपको भेज रहा हूँ। यदि ये बयान सच हैं तो यह उन कम्पनियोंके लिए शोभनीय नहीं है। श्री हॉल्टमको[२] लिखे अपने पत्रकी प्रतिलिपि भी में संलग्न कर रहा हूँ। यह पत्र आगकी खबर सुननेसे पहले लिखा गया था। मैंने ढोकरहावालोंके बयान कल शाम ६॥ बजेके बाद लिये थे; यह पत्र उससे पहले ही रवाना किया जा चुका था।

जिन्हें अपनी रैयतसे भारी-भारी रकमें पानेकी अभीतक आदत रही है उनसे उस बड़ी आमदनीको छोड़ देनेकी सम्भावनापर विचार करनेको कहा जाये; तो मैं उन लोगोंकी [विरोधी] भावनाको समझ सकता हूँ, और कुछ हद तक उसकी कद्र भी

  1. १. देखिए परिशिष्ट ६।
  2. २. देखिए “पत्र: ए० के० हॉल्टमको”, १९-५-१९१७।