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पत्र: एस्थर फैरिंगको

यह रकम वसूली कानून द्वारा अपेक्षित नहीं है और मैं आशा करता हूँ कि भविष्यमें आप इसे हटा देंगे।

अब पेड़ोंको काटनेका प्रश्न बाकी बचता है। बंगाल काश्तकारी-कानून इस विषय-पर स्पष्टतः रैयतको पेड़ काटनेकी अनुमति देता है और इसके लिए पहलेसे जमींदारको नोटिस देना या उसकी अनुमति लेना जरूरी नहीं मानता। परन्तु मैं समझता हूँ कि हालके वर्षोंमें जमींदार कटी हुई लकड़ीमें से आधी ले लेते रहे हैं। मैं नहीं जानता कि यह रिवाज पक्का हो गया है या नहीं। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसपर समझौतेकी प्रतीक्षा की जा सकती है।

कोडाई पानके सम्बन्धमें जो कागजात भेजनेका वायदा आपने किया था उनकी मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ। सीताराम तिवारीके सम्बन्धमें, मैं समझता हूँ कि ११ कट्ठेपर ३६ रुपया लगान क्लर्ककी भूल है और मैं सुझाव देना चाहता हूँ कि यदि आप इस भूलको मान लें और सामान्य निर्धारित दरके हिसाबसे लगान लें तो वह आपके लिए शोभनीय होगा।

मैं आपसे प्रार्थना करूँगा कि इस पत्रमें उल्लिखित मुद्दोंपर ध्यानपूर्वक विचार करें और यदि आप उपर्युक्त सुझावोंके अनुसार अपनी रैयतको राहत दे सकें तो मुझे इसमें सन्देह नहीं कि इससे आपकी कम्पनी और उसकी रैयतके बीच एक स्थायी शान्ति स्थापित होगी और उससे भी ज्यादा यह एक सहज न्यायपूर्ण कार्य होगा।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० ८३, पृष्ठ १४१-३।
 

३१२. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बेतिया
मई १९, १९१९

प्रिय एस्थर,

तुम्हारे पत्रसे तुम्हारे हृदयकी अच्छाई जाहिर होती है। मुझे फिलहाल ५०) की सचमुच ही आवश्यकता नहीं है। जितनी आवश्यकता है, इस समय हमारे पास उससे अधिक ही रुपये हैं। यदि तुम उस धनका कोई और उपयोग न सोच पाओ तो उसे आपत्कालीन कोषमें जमा करनेके लिए आश्रमको भेज दो। आश्रमको भी धनकी कोई तात्कालिक आवश्यकता नहीं है। शायद तुम्हें यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं होगा कि मेरे कामके लिए प्राप्त होनेवाली सारी आर्थिक सहायता एक प्रकारसे मेरी ईश्वर-प्रार्थनाके जवाबमें प्राप्त हुई है। जो कुछ सेवा कार्य मैंने अपनाये हैं उन्हें