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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिरात जमीन लेनेके लिए उसपर बड़ा दबाव डाला गया। उसे वापस लौटानेके लिए जितनी तत्परतासे वे आगे आये हैं उससे उनका विचार स्पष्ट व्यक्त हुआ दिखता है। पिछले १० वर्षों तक रैयत जो देती रही है वह, उपर्युक्त दृष्टिकोणके अनुसार नील न उपजानेका तावान हुआ। और इस कारण कम्पनीको तिन-कठियापर औसतन फी बीघा सौ रुपयेसे ज्यादा मिले। इन परिस्थितियोंमें और इस तथ्यको ध्यानमें रखते हुए कि आपका विश्वास है कि जिरात जमीन वापस पानेसे आपको लाभ होगा, मैं आशा करता हूँ कि आप नीलकी खेती फिरसे किये जानेपर जोर नहीं देंगे।

मैं देखता हूँ कि कुछ मामलोंमें क्षतिपूर्ति इस-ढंगसे की गई है कि रैयतकी कारत-जमीनमें से कट्ठे ले लिये गये हैं। मैं समझता हूँ कि यदि आप मेरा सुझाव स्वीकार कर सकें कि जिरात वापस ले लें और आगेकी क्षति, वह चाहे जिरातपर हो या काश्तपर, जाने दें, तो कम्पनी और रैयतके बीच संघर्षका यह दुःखद मुद्दा सुविधासे हल हो जायेगा और इस प्रकार आप एक ऐसा दृष्टान्त सामने रखेंगे जिसे अन्य नीलके बागान-मालिक भी अपनायेंगे और लाभ उठायेंगे।

रैयतसे नीलकी खेतीमें घाटेकी वसूलीका बयान करते हुए मैंने अभी तक अपने आपको आपकी मुकर्ररी जमीन तक सीमित रखा है। ट्क्का जमीनपर लगता है कि आपने वही तरीका अपनाया है जो अन्यत्र अपनाया जा रहा है। आपने रैयतसे बकाया तावानके लिए हैंडनोट लिये हैं जिनपर सूदकी दर बहुत बड़ी है। मेरा सुझाव है कि बकायाके हैंडनोट रद कर दिये जायें। शान्ति और समझौतेकी खातिर रैयत न तो जिनका भुगतान नहीं हुआ है ऐसे सब ऊपर उल्लिखित हुंडाकी वापसीके लिए कुछ कहे और न उस तावानकी वापिसीके लिए जो वसूल कर लिया गया है और जिसके शेषांशके लिए हैंडनोट लिखाये गये हैं।

जुर्मानोंके बारेमें, मुझे मानना पड़ेगा कि वे विद्रोही रैयतपर किये गये हैं। यह शिकायत प्रायः आम शिकायत है। मैंने रैयतको बताया कि आपने कहा कि जब रैयत आपके पास अपने आपसी झगड़ोंके समझौतेके लिए आई तो आपने केवल नाम-मात्रका जुर्माना किया और वह भी आपने जीतनेवालेको लौटा दिया। रैयतने इस कथनका दृढ़तासे खण्डन किया और कहा कि जुर्माने यहाँ तक कि २५ रु० एक बारमें और इससे ज्यादा भी, कम्पनीके खिलाफ तथाकथित जुर्मके लिये किये गये थे।

रैयत आपके जमादार गोकुल मिसरके खिलाफ शिकायतमें भी उतनी ही दृढ़ है और यदि आप मामलेकी और जानकारी चाहेंगे तो मैं आपके सामने सहर्ष प्रमाण प्रस्तुत करूँगा।

नई इमारत बनाने या दुबारा बनानेकी अनुमतिके लिए कुछ वसूलीके तरीकेके सम्बन्धमें (जिसे मैं समझता हूँ कि हाल ही में अपनाया गया है) निवेदन है कि आपने उसे इस आधारपर उचित ठहराया कि जो भूमि रैयतोंकी काश्तकारीमें है वह जमींदारकी है और यदि रैयत उसका इस्तेमाल इमारत बनाने के लिए करे तो इसके लिए उसे पैसा देना होगा। बंगाल-काश्तकारी-कानूनको देखते समय मैं पाता हूँ कि कानून रैयतको जमींदारके किसी भी प्रकारके दखलके बिना इमारत बनानेकी अनुमति देता है, जहाँतक कि वे ऐसा अपनी सम्पत्तिके लाभार्थ करते हैं। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि