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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपने यहाँके काम-काजमें देख सकता हूँ। मुझे लगता है कि देशके अन्य भागोंसे स्वयं-सेवक बुलाने होंगे। जिन्हें हिन्दी न आती होगी उनके सम्बन्धमें मुश्किल ही है। मुझे तो बराबर इसके प्रमाण मिलते रहते हैं कि हिन्दी सीखे बिना शिक्षा बिलकुल अधूरी रहती है।

मेरा खयाल है, यदि आनन्दशंकरभाई अथवा केशवलालभाई[१] प्रतिदिन एक घंटा अथवा सप्ताहमें कुछ घंटे देकर शिक्षकोंका गुजराती भाषाका स्तर ऊँचा उठायें और वे पुरानी गुजराती पुस्तकोंको आसानीसे समझने योग्य बन जायें तो अच्छा हो। इस समय हम ऐसे प्रश्नोंपर विचार कर सकते हैं, जैसे फिलहाल हम गुजरातीमें कितनी प्रगति कर सकते हैं, किन पुस्तकोंको अच्छा कहा जा सकता है और नये शब्दोंके क्या अनुवाद किये जायें। हम अखा भगतकी[२] रचनाओं अथवा ऐसी ही अन्य गम्भीर पुस्तकोंके अर्थोंमें गहराई तक उतर सकते हैं और शिक्षकोंको नित्य-प्रति जिन बातोंको समझानेमें कठिनाई आती हो, उनके सम्बन्धमें किसी निश्चित निष्कर्षपर पहुँचा जा सकता है। इस प्रकार गुजराती भाषाके स्तम्भोंको भी कुछ अधिक प्रकाश मिलेगा और कुछ ऐसी बातोंपर विचार करनेका अवसर मिलेगा जिन्हें उन्होंने अछूता छोड़ दिया है। शिक्षकोंके पारिभाषिक शब्दोंके ज्ञानमें एकरूपता आयेगी और हिज्जों आदिके सम्बन्धमें भी निर्णय किया जा सकेगा। इस समय या तो सभीके अपने-अपने नियम हैं या हम नियमोंके बिना ही काम कर रहे हैं।

मैं यह मान लेता हूँ कि आप यह पत्र अन्य शिक्षकोंको भी पढ़वा देंगे।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ६३५५) की फोटो-नकलसे।

३११. पत्र: ए० के० हॉल्टमको

बेतिया
मई १९, १९१७

प्रिय श्री हॉल्टम,[३]

आप सारिस्वा आये और अपनी गाड़ी भेजी, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।[४]

आपके और श्री लुईके चले जानेके बाद मैं लोगोंके साथ बैठा । उनकी संख्या ५०० से ऊपर होगी। मैंने उनसे बातचीत की और उन्हें बताया कि आप न्याय करना

 
  1. १. दीवान बहादुर केशवलाल हर्षदराय ध्रुव; एक गुजराती विद्वान् और लेखक।
  2. २. गुजरतके कवि।
  3. ३. ढोकरहा और लोहरिया कम्पनियोंके प्रबन्धक।
  4. ४. गांधीजी १६ मईको सारिस्खा गये थे।