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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाना चाहिए और गैरकानूनी तौरपर दस्तूरी वसूल करके किसानोंको उनकी प्राप्य मजदूरीसे कम देनेका रिवाज बन्द होना चाहिए। मेरा निश्चित विश्वास है कि गोरे जमींदार इस बुराईको मिटा सकते हैं यद्यपि वे उसे ‘हिमालय-जितनी पुरानी’ बताते हैं।

किसानोंको एक बार यह विश्वास हो जाये कि वे आजाद हैं और जमींदार उनके साथ मनमानी नहीं कर सकते तो फिर इस सवालकी जाँच करनेकी जरूरत नहीं रह जायेगी कि नीलके साटोंमें, [फैक्टरियोंको] गाड़ियाँ किराएपर देनेके साटोंमें और मजदूरीके रूपमें उन्हें जो मुआवजा दिया जाता है वह पर्याप्त है या नहीं है। सर्वसम्मत समझौतेके आधारपर उन्हें यह सलाह दी जानी चाहिए कि उस साल उन्होंने नीलकी या जो भी दूसरी फसल उगाई हो उसे वे पूरा कर दें। लेकिन इस सालके बाद कोई भी फसल क्यों न हो वे उसे अपनी इच्छाके अनुसार चाहे उगाये, चाहे न उगायें। उन्हें इस सम्बन्धमें निर्णयकी पूरी आजादी होनी चाहिए।

आपके ध्यानमें यह बात आयेगी कि मैंने इस प्रतिवेदनको ज्यादा दलीलें देकर बोझिल नहीं बनाया है। किन्तु यदि सरकारकी ऐसी इच्छा हो कि मुझे अपना अमुक निष्कर्ष प्रमाणित करना चाहिए तो मैं उसके प्रमाण सहर्ष पेश करूँगा।

अन्तमें मैं यह कहना चाहूँगा कि बागान मालिकोंकी भावनाओंको दुखानेकी मेरी कतई इच्छा नहीं है। मुझे उनसे सदा सद्व्यवहार मिलता रहा है। लेकिन चूँकि मैं यह मानता हूँ कि यहाँके किसान एक भयंकर अन्यायकी चक्कीमें पिस रहे हैं और उन्हें उससे तत्काल मुक्त किया जाना चाहिए इसलिए यहाँ मैंने उनके द्वारा चलाई जा रही प्रणालीकी आलोचना अवश्य पेश की है――हाँ, मैंने यह सावधानी रखी है कि जहाँ तक सम्भव हो मैं अपनी बात शान्त भावसे कहूँ। यह कार्य मैंने इस आशासे हाथमें लिया है कि अंग्रेज-जातिके नाते अपने इस विश्वासको ध्यानमें रखकर कि पूरी-पूरी व्यक्तिगत स्वतन्त्रताका उपयोग उनका जन्मसिद्ध अधिकार है वे अपने गौरवकी ऊँचाई तक उठ सकेंगे और अपने आश्रित किसानोंको भी वही स्वतन्त्रता देनेकी उदारता दिखायेंगे।

मैं इस प्रतिवेदनकी नकलें तिरहुतके कमिश्नर, चम्पारनके कलेक्टर, बेतियाके सब-डिवीजनल अधिकारी, बेतिया राजके मैनेजर और बिहार प्लांटर्स एसोसिएशन (बिहारके गोरे कामदारोंका संघ) तथा जिला बागान मालिक संघ (प्लान्टर्स एसोसिएशन) के मन्त्रियोंको भेज रहा हूँ। इसके सिवा, मैं उन्हें भारतीय लोकमतके उन नेताओंको भी भेज रहा हूँ जो यहाँ मेरे और मेरे साथियोंके इस कामसे सम्पर्क रखते रहे हैं। नकलोंपर ऐसी टिप्पणी दे दी गई है कि प्रतिवेदन प्रकाशनके लिए नहीं है, क्योंकि जबतक वैसा करना बिलकुल आवश्यक न हो जाये तबतक हम इस सवालको सार्वजनिक विवादका विषय नहीं बनाना चाहते।

मेरी ओरसे यह आश्वासन तो है ही कि जब भी मेरी उपस्थिति आवश्यक मानी जाये मैं आपकी सूचना पाते ही सेवामें हाजिर हो जाऊँगा।

[अंग्रेजीसे]

सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० ७२, पृष्ठ १२६-१३१।