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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्षमताको शून्य अंक मिलेगा। मैंने तुम्हारे ही भरोसे यह बीड़ा उठाया है। [तुम्हारे असफल होनेपर] मेरी आत्मा भी यही कहेगी कि मुझे लोगोंकी परख बिलकुल नहीं है। इसलिए तुम्हें मेरा आशीर्वाद और प्रोत्साहन सदा प्राप्त होता रहेगा । मेरी कामना है कि प्रभु तुम्हें पूरा और अपेक्षित बल दे। यदि तुम दोनोंका जीवन आदर्श रहेगा तो बहुतसे युवकोंका उद्धार हो जायेगा। मेरी प्रबल इच्छा है कि तुम सब, जिनपर मेरी आशा बँधी हुई है, मेरे समान बनो――इतना ही नहीं, बल्कि मुझसे भी अच्छे बनो और मुझमें जो दोष हों, वे तुम लोगोंमें न आयें। यदि तुम अपनी आकांक्षा इतनी ऊँची रखो तो उसमें कोई दोष नहीं है। बेटा बापकी सम्पत्तिको ज्योंका-त्यों बनाये रखे, यह कोई अनोखी बात नहीं है; किन्तु यदि वह उसमें वृद्धि करे तो उससे बापको प्रसन्नता होती है और उसकी अपनी शोभा भी बढ़ती है।

मुझे अभी तो यहीं रहना होगा। तुम्हें सभी समाचार डॉक्टर साहबसे मिल जाते होंगे; इसलिए ख़बरें इसमें नहीं लिख रहा हूँ। यदि वहाँका भोजन तुम्हारे शरीरके प्रतिकूल न हो तो अभी उसमें कोई बड़ा फेरफार करनेकी उतावली न करना। इस समय तुम्हारा कर्त्तव्य इतना ही है कि तुम अपना शारीरिक विकास भली-भाँति करो; लड़कोंको पढ़ा-लिखाकर उन्नत करो; और अन्य प्रकारसे डॉक्टर साहबको सन्तोष दो।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६७५) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

३००. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बेतिया
मई १३, १९१७

प्रिय एस्थर,

मुझे पत्र लिखनेमें क्षमा याचनाकी क्या बात है? तुम्हारे पत्रोंका आना मुझे बहुत अच्छा लगता है।

मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मिशनको तुमने जो कुछ करनेका वचन दिया है, सम्पूर्ण मनसे उसे पूरा करना ही तुम्हारा कर्त्तव्य है। आश्रम तुम तभी आओ जब वे तुम्हें छुट्टी दें और यह बिलकुल स्पष्ट दिखने लगे कि यहाँ आकर तुम मानवताकी सेवा ज्यादा अच्छी तरह कर सकोगी। जब वह घड़ी आयेगी तब आश्रम अपने ही परिवारके एक सदस्य के रूपमें तुम्हारा स्वागत करेगा। बेशक, तबतक तुम वहाँ जब भी तुम्हारा जी हो जा सकती हो और जितने दिन रहना चाहो रह सकती हो।

आश्रममें आजकल हम लोग शिक्षाका एक प्रयोग कर रहे हैं। ऐसी शिक्षाका जो आदर्शका काम दे सके। मुझे विश्वास है कि तुम वहाँ जब भी जाओगी, तुम्हें हमारे शिक्षक अच्छे लगेंगे। मेरा खयाल है कि वे सब सज्जन और विचारवान् लोग हैं। G