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२९८. पत्र: हरिलाल देसाईको

बेतिया
वैशाख बदी ५ [मई ११, १९१७][१]

भाई श्री हरिलाल देसाई[२],

आपका पत्र मुझे यहाँ मिला। आप मुझसे मिले थे, यह मुझे याद है। आप मेरे साथ यहाँ रहना चाहें तो रह सकते हैं। मैं अभी कुछ महीने इसी प्रदेशमें रहूँगा। यदि आप मेरी अनुपस्थितिमें अहमदाबादमें रहना चाहें, तो वैसी व्यवस्था भी की जा सकती है। आपको जैसा अनुकूल हो, वैसा करें। आप कानपुर या पटना होकर यहाँ आ सकते हैं।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

भाई श्री हरिलाल माणिकलाल देसाई

तापीनी खड़की

कपड़वंज

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी० एन० १८६७) की फोटो-नकलसे।

२९९. पत्र: जमनादास गांधोको

बेतिया
चम्पारन
वैशाख बदी ६ [मई १२, १९१७][३]

चि० जमनादास[४],

तुम्हारे पत्रकी राह मैं ऐसे ही देख रहा था जैसे [चातक] मेघकी देखते हैं। पत्र मिला और मनको काफी सन्तोष प्राप्त हुआ। उसी डाकसे नारणदासका भेजा हुआ तुम्हारा एक दूसरा पत्र भी मिला है। तुम्हें मैं पत्र लिखता रहूँगा। मेरी कसौटी तुम्हारी सफलता है। यदि तुम मेरी अपेक्षाओंको पूरा न कर सके, तो मेरी परखकी

 
  1. १. इस दिन गांधीजी बेतियामें थे।
  2. २. हरिलाल माणिकलाल देसाई (१८८१-१९२७); शिक्षा शास्त्री और समाज-सेवक। वे १९२० में अपना काम छोड़कर गांधीजीके मार्गदर्शनमें असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हुए। बाद में उन्होंने अपना जीवन खादी और ग्रामोत्थानके कार्य में लगा दिया।
  3. ३. इस तारीखको गांधीजी बेतियामें थे।
  4. ४. छगनलाल गांधीके भाई।