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२८४. पत्र: चम्पारनके जिला मजिस्ट्रेटको

मोतीहारी
अप्रैल १७, १९१७

महोदय,

आजकी तारीखके आपके पत्रके उत्तरमें निवेदन है कि मैं कल खुशीसे मोतीहारीमें रुककर सम्मनकी प्रतीक्षा करूँगा।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया) से; सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० २५, पृष्ठ ६८ से भी।

२८५. वक्तव्य : अदालतमें[१]

[मोतीहारी]
अप्रैल १८, १९१७

अदालतकी इजाजतसे मैं एक संक्षिप्त बयान देना चाहता हूँ और उसके द्वारा यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैंने जाब्ता फौजदारीकी १४४ धाराके अन्तर्गत जारी किये गये हुक्मकी जाहिरा उर्दूली करनेका यह बहुत संगीन काम क्यों किया है। मेरी विनम्र सम्मतिमें सवाल मेरे और स्थानीय अधिकारियोंके बीच मतभेदका है। मैं इस प्रान्तमें मानव जाति और राष्ट्रकी सेवा करनेके इरादेसे प्रविष्ट हुआ हूँ; मुझे यहाँ आने और रैयतकी सहायता करनेका जो आग्रहपूर्ण आमन्त्रण भेजा गया था उसीको स्वीकार करके में यहाँ आया हूँ।[२] रैयतका यह कहना है कि उनके साथ बागान मालिक उचित व्यवहार नहीं करते। मामलेको पूरी तौरपर समझे बिना मेरे लिए उनकी किसी प्रकारकी सहायता करना असम्भव था। इसी कारण इस प्रश्नका अध्ययन, यदि सम्भव

 
  1. १. गांधीजी १८-४-१९१७ को जिला मजिस्टेटकी अदालत में पेश किये गये। यह बयान उन्होंने वहाँ पढ़ा और जब उनसे कहा गया कि वे सफाई पेश करें तो इस आशंकासे कि ऐसा करनेसे मामला काफी खिच जायेगा, उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। मजिस्ट्रेटने तब भी सजा नहीं सुनाई और फैसला ३ बजे तकके लिए मुल्तवी कर दिया। इस बीच उनसे कहा गया कि वे सुपरिन्टेंडेंट और जिला मजिस्ट्रेटसे मिलें। फलस्वरूप गांधीजीने यह मान लिया कि उनकी हलचलोंके विषय में सरकारका निर्णय होने तक वे गाँवोंमें घूमना बन्द रखेंगे। तब मुकदमा शनिवार २१-४-१९१७ तकके लिए मुल्तवी कर दिया गया।
  2. २. देखिए परिशिष्ट ३।