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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

जब प्रथम श्रेणीके कार्यकर्ता समाप्त हो जायें या बिलकुल न मिलें तब दूसरी श्रेणीके कार्यकर्ता भर्ती किये जायें। ये उन्हीं केन्द्रोंमें गवाही लें, जिनमें उनकी उपस्थितिसे नाराजी न हो। काश्तकारोंसे शान्तिपूर्वक इन केन्द्रोंमें आकर गवाहियाँ देनेके लिए कहा जा सकता है। सभी कागजात इकट्ठे करके वर्गीकृत कर लिए जायें। इस कार्य में छः हफ्तेसे ज्यादा वक्त न लगना चाहिए। जाँचके बाद सारी गवाहियाँ, चाहे वे मौखिक हों या लिखित, लोगोंमें निजी तौरपर बाँटनेके लिए छाप ली जायें। यदि पहले-पहल इन्हें छापनेके लिए कोई तैयार न हो, तो इन्हें टाइप करा लिया जाये। सभी कागजात और गवाहियोंको एक जगह इकट्ठा कर लिया जाये और फिर एक व्यक्तिके निर्देशन में कामकी सारी सामग्रीको छाँटकर व्यवस्थित किया जाये। जबतक श्री ऐन्ड्रयूज यहाँ आकर इस सामग्रीको सजाने-सँवारनेका काम नहीं करते, तबतक इसे बाबू ब्रजकिशोर- प्रसाद[१]सँभालें।

इसके आगे एक छोटी अखिल भारतीय समितिकी सलाहसे कार्रवाई की जाये, जिसके अध्यक्ष या तो पण्डितजी[२] हों या श्री शास्त्री[३]। एक निष्पक्ष जाँच समितिकी माँग की जानी चाहिए, जिसमें काश्तकारोंका प्रतिनिधित्व करनेवाले कुछ (गोरे जमींदारोंके प्रति- निधियोंकी संख्याके बराबर संख्यामें) भारतीय सदस्य शामिल हों। हमारे प्रतिनिधि हमारी पसन्दके होने चाहिए।

जबतक जाँच न हो जाये तबतक गोरे जमींदार हर्जाने आदिके लिए कोई दीवानी दावे दायर न करें। प्रतिदिन अथवा जैसी व्यवस्था हो उसके अनुसार मजदूरी बाँटते समय एक निष्पक्ष व्यक्ति उपस्थित रहे।

जहाँ आवश्यक हो, कार्यकर्त्ताओंको वेतन दिया जाये। यदि स्थानीय रूपसे पैसा इकट्ठा न किया जा सके, तो इसके लिए साम्राज्यीय नागरिकता संघ (इम्पीरियल सिटीजनशिप एसोसिएशन) से कहा जाये।

महात्मा, खण्ड १ में प्रकाशित मूल अंग्रेजी प्रतिकी प्रत्याकृतिसे

 
  1. १. दरभंगाके प्रमुख वकील, बिहार और उड़ीसा विधान परिषदके सदस्य; और गांधीजीके सक्रिय सहयोगी।
  2. २. पण्डित मदनमोहन मालवीय।
  3. ३. वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री।