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पत्र: वाइसरॉयके निजी सचिवको

मैं यह कहना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ कि मैं इस जिलेसे नहीं जा सकता; किन्तु यदि अधिकारी चाहते हैं तो मैं इस हुक्मकी उद्लीकी सजा भुगत लूँगा।

कमिश्नरका कथन[१] है कि मेरा उद्देश्य सम्भवतः कोई आन्दोलन करना है। मैं इसका खण्डन करता हूँ। मेरी विशुद्ध और एकमात्र इच्छा जानकारी प्राप्त करनेका वास्तविक प्रयत्न करना है। और जबतक मुझे मुक्त रहने दिया जायेगा तबतक मैं अपनी इस इच्छाके अनुसार काम करता रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो० क० गांधी

जिला मजिस्ट्रेट[२]
मोतीहारी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया) से; सिलॅक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० २१, पृष्ठ ६३-६४ से भी।

 

२७७. पत्र: वाइसरॉयके निजी सचिवको

प्रकाशनार्थ नहीं

मारफत जिला मजिस्ट्रेट
मोतीहारी
अप्रैल १६, १९१७

प्रिय श्री मैफी[३]

मैं इस जिलेमें स्वतः यह जानकारी प्राप्त करनेके लिए आया हूँ कि गोरे जमींदारोंके खिलाफ काश्तकारोंके जो आरोप हैं, उनमें सचाई है या नहीं। मैंने गोरा जमींदार संघके मंत्री और फिर डिवीजनके कमिश्नरसे भेंट करके उनका सहयोग माँगा।[४] किन्तु उन दोनोंने मेरे निवेदनको अस्वीकार कर दिया और मुझे नम्रतापूर्वक इस कार्यसे विरत होनेकी सलाह दी। लेकिन मैं तो उनकी सलाह माननेमें असमर्थ था; निदान तबसे मेरा कार्य जारी है। मजिस्ट्रेटने मुझपर एक हुक्म[५] तामील किया है, जिसमें मुझे जिलेसे चले जानेके लिए कहा गया है। इस हुक्मके जो कारण बताये गये हैं उनसे मैं सहमत नहीं हो सकता। इसलिए मर्जी न होते हुए भी लाचार होकर मुझे इस हुक्मकी उदूली करनी पड़ी है[६]और मजिस्ट्रेटको लिखना पड़ा है कि मैं इस हुक्म-उद्लीकी सजा भुगत लूँगा।

  1. १. देखिए परिशिष्ट ४।
  2. २. डब्ल्यू० बी० हेकॉक।
  3. ३. वाइसरॉय लॉर्ड चैम्सफोर्डके निजी सचिव।
  4. ४. देखिए “पत्र: एल० एफ० मॉर्स हेडको”, १२-४-१९१६।
  5. ५. देखिए परिशिष्ट ४।
  6. ६. देखिए पिछला शीर्षक।
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