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२७४. पत्र: मगनलाल गांधीको

अप्रैल १६, १९१७

चि० मगनलाल,

मेरा स्वर्ण-पदक परमश्रेष्ठ वाइसरॉयके निजी सचिव, शिमलाके पतेपर भेज देना। रजिस्टर्ड पार्सल करना। मुझे इस जिलेसे निकल जानेका हुक्म दिया गया है। मैंने उसे माननेसे इनकार कर दिया है। किसी भी क्षण गिरफ्तारीका या ऐसा ही कोई दूसरा हुक्म आनेकी सम्भावना है। लक्ष्मी अनुमानसे पहले ही तिलक करनेके लिए आ गई है। मैं तो हाथ धोनेके लिए भी नहीं रुका हूँ। हममें से किसीने भी यह कल्पना नहीं की होगी कि जिस बिहारमें भगवान् रामचन्द्र, भरत, जनक और सीताने विहार किया था; उसीमें मैं जेल जाऊँगा। जानकीनाथ राम भी तो नहीं जानते थे कि कल प्रातःकाल तक क्या होगा।[१]

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

पूछताछ हो तो बता देना कि मेरी कोई सम्पत्ति नहीं है।

मूल गुजराती पत्रकी हस्तलिखित प्रति (एस० एन० ९८१८) की फोटो-नकल से।

 

२७५. पत्र: मगनलाल गांधीको

मोतीहारी
चैत्र बदी ९ [अप्रैल १६, १९१७]

चि० मगनलाल,

तुम्हें कार्ड लिखकर डाल दिया है। वह इसके साथ ही मिलेगा। कार्ड हुक्म मिलनेपर तुरन्त ही लिख दिया था। अभीतक में गिरफ्तार नहीं हुआ हूँ, इसलिए कुछ और लिख देता हूँ। मैं मुँह धोनेको भी नहीं रुका, यह अक्षरशः सत्य है। पुलिस इन्स्पेक्टर ने कहा: “उत्तर भेजनेसे पहले हाथ-मुँह तो धो लो।” मैंने तो मनमें यही कहा कि उत्तर भेजकर ही वह सब करूँगा। मैं एक गाँवमें जाँच करनेके लिए जा रहा था, तभी रास्ते में पकड़ लिया गया। फिर वे मुझे बैलगाड़ीमें बैठाकर ले चले। रास्ते में पुलिसके एक बड़े अधिकारीने मुझपर हुक्म तामील किया। पहले तो उसने यही कहा कि कलक्टर बुलाते हैं। मैं बिना कोई इनकार एतराज किये पीछे मुड़ पड़ा। मैंने जिला छोड़नेसे इनकार किया। इस जुर्ममें छः मासकी कैद और १,००० रुपये जुर्मानेकी सजा दी जा सकती है। देखें, क्या होता है।

  1. १. या गुजराती गीतकी पंक्तिका आशय।